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________________ २०० ऊपर के सूत्रों में लिखा है कि, 'पुष्फवद्दलए विउध्वंति' अर्थात् फूलों के बादल बनाए हैं, परन्तु फूल नहीं बनाए । इससे भी वैक्रिय फूल सिद्ध नहीं होते। .. अब सचित्त फूल का स्पर्श साधु कैसे करे ? इसके उत्तर में कहना है कि घुटनों तक फैले हुए फूलों को साधु अथवा अन्य किसी व्यक्ति से जरा भी बाधा नहीं पहुँचती, ऐसा भगवान् का अतिशय है। जिनके प्रभाव से शेर तथा हिरन, बिल्ली तथा चूहा, चीता तथा बकरी इत्यादि जानवर अपने जाति स्वभाव के पारस्परिक वैर को भी भूल कर धर्म का उपदेश सुनते हैं। उसके प्रभाव से पुष्प के जीवों को कष्ट न हो तो, इसमें आश्चर्य किस बात का? श्री स्थूलभद्रजी के चरित्र में कहा है कि, 'कोश्या गणिका ने सरसों के ढेर पर सुई को खड़ा कर उस पर गुलाब का फूल रखकर उस पर नाच किया, फिर भी स्त्री को अथवा फूल को कोई भी हानि नहीं पहुँची' । सोचो कि सरसों पर सूई, उस पर फूल और फूल पर स्त्री का बोझ होते हुए भी किसो को बाधा नहीं पहुँची तो फिर अत्यन्त अचिंतनीय तथा निरुपम प्रभावशाली श्री तीर्थंकरदेव के अतिशय से फूलों को बाधा न हो बल्कि वे प्रफुल्लित हों, इसमें अशक्य क्या है ? जिनके संपर्क से करोड़ों जीव समवसरण भूमि में एकत्रित होते हुए भी भीड़ होने का काम नहीं, उनका प्रभाव सामान्य जन की कल्पना से बाहर होता है, इसमें कौनसी बड़ी बात है ? अकथनीय शक्ति के स्वामी देवता जल-थल में उत्पन्न फूलों को लाकर, उनके बादल बनाकर ऐसी खूबी के साथ बरसाते कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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