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________________ १६६ लोग भी उस डाक्टर को निर्दयी अथवा पापी नहीं कहते, क्योंकि डाक्टर का परिणाम तो रोग दूर करना होता है, उसे किसी प्रकार हिंसक अथवा अधर्मी नहीं कहा जा सकता। इसी प्रकार सम्यग्दृष्टि श्रावक एकेन्द्रिय जीवों पर अनुकंपा लाकर, उनके मिथ्यात्व रूपी रोग को दूर करने के लिये उनको भगवान् के चरण कमलों में पहुँचाता है । अत: वे पुष्पादि वस्तुएँ को धन्य हैं कि उनका ऐसे उत्तम कार्य में उपयोग किया जाता है। उन वस्तुओं का ऐसा अहोभाग्य कहाँ कि जिससे उनको परमेश्वर के चरण कमलों का स्पर्श हो अथवा वहाँ आश्रय मिले। धर्मदाता गुरु महाराज भी शिष्य के अज्ञान रूपी अंधकार को हटाने के लिये उसकी नाना प्रकार से ताड़ना करते हैं, उस पर क्रोध करते हैं, शिष्य को प्रत्यक्ष कष्ट देते हैं फिर भी उनको कोई बुरा या निर्दयी नहीं कहता पर उलटी उनकी प्रशंसा ही करते हैं। ऐसा ही श्री जिनपूजा के लिये उपयोग में आने वाले एकेन्द्रिय जीवों के विषय में भी समझना लेने चाहिए। - प्रश्न ५४-तीर्थकर देव के समवसरण में देवतागण फूल की वृष्टि करते हैं। वे सचित्त हों तो साधु से उनका संघट्टा कैसे हो सकता है ? उत्तर-श्री समवायांग तथा श्री रायपसेरणी सूत्र में स्पष्ट कहा है कि, 'जलज थलज' इत्यादि शब्दों से जल में उत्पन्न कमलादि तथा स्थल अर्थात् जमीन पर उत्पन्न जाई जुई, केवड़ा, चंपा, गुलाब आदि पाँच रंगों के फूलों की, कंद नीचे तथा मुख ऊपर ऐसे जानु-प्रमाण फूलों की वृष्टि होने का उल्लेख है । इससे वे फूल अचित्त नहीं पर सचित्त ही साबित होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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