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________________ १६८ सेसकालं च ते तदण्णे य लोगा सुहभागिरगो हवंति एवं वव्वत्थए जइवि असंजमो तहावि तम्रो चेव सा परिणामसुद्धी हवइ जाए प्रसंजमो वज्जियं अण्णं च निवनसेसं खवेइत्ति तम्हा विरियाविरहि एण दव्वत्थश्रो कायव्वो सुभाणुवंधी पभूयतरणिज्जराफलो यत्ति काऊरणमिति" "जिस प्रकार किसी नये नगर में पर्याप्त जल के अभाव में बहुत से लोग प्यास से मरते हों तो, प्यास दूर करने के लिये वे कुत्रा खोदते हैं । उस समय उन्हें अधिक प्यास लगती है तथा कीचड़ और मिट्टी से शरीर मलिन बन जाता है, तो भी कुप्रा खोदने के बाद उसमें निकले हुए पानी से उनकी प्यास बुझ जाती है, तथा पहले का लगा हुआ कीचड़ भी दूर हो जाता है । उसके पश्चात् वे खोदने वाले तथा अन्य लोग उस पानी से सुख भोगते हैं । उसी प्रकार द्रव्यपूजा में जो, स्वरूप जीव हिंसा दिखाई देती है पर उस पूजा से परिणाम की ऐसी शुद्धि होती है कि, जिससे असंयम से उत्पन्न हुए अन्य संताप भी नष्ट हो जाते हैं । अर्थात् संसार को क्षीरण करने का वह पूजा सबल काररण बनती है । इस कारण देशविरति श्रावक के लिये जिनपूजा शुभानुबंधी और अत्यंत निर्जरा के फल को देने वाली है । जैसे दयालु, डॉक्टर, रोगी व्यक्ति पर दया लाकर, उसका रोग दूर करने के लिये नाना प्रकार की कड़वी औषधियां देता है अथवा उस रोगी के शरीर की शल्य क्रिया करता है, जिससे उसे अत्यंत पीड़ा होती है। उससे हैरान होकर भी वह अपने परोपकारी डाक्टर की निन्दा नहीं करता और इसी तरह अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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