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________________ आदि तमाम आवश्यक क्रियाएँ जान बूझ कर की जाती हैं। उनको अनजान में करने का, कहने से तो उन क्रियाओं के करने वाले सभी साधु, श्रावक अज्ञानी ठहरेंगे जिनको कृत्याकृत्य व गमनागमन की भी खबर नहीं। और यदि ऐसा होता है तो उन्हें सम्यग्दृष्टि कैसे कह सकते हैं ? अतः भगवान् की आज्ञा में रह कर उनके आदेशानुसार काम करने वाला व्यक्ति हिंसक नहीं, पर अहिंसक एवं पापी नहीं, वरन् पुण्यवान् गिना जाता है । यदि ऐसा न मानें तो एकेन्द्रिय जीव तो जानेअनजाने लेशमात्र भी हिंसा नहीं करते, इसलिये उनको तो सर्वोच्च गति प्राप्त होनी चाहिये और यदि ऐसा ही बन जाता है तो क्रिया, कष्ट, तप, जप आदि का क्या प्रयोजन ? ___ केवल मुंह से 'दया, दया' की पुकार करने से दया उत्पन्न नहीं होती। इसके लिये 'दया तथा हिंसा का परमार्थ स्वरूप क्या है ? उसे समझना चाहिये। शास्त्रों में हिंसा तथा अहिंसा तीन २ प्रकार की कही है। हिंसा के तीन प्रकार हैं(१) हेतु हिंसा .. (२) स्वरूप हिंसा (३) अनुबंध हिंसा वैसे ही अहिंसा के भी तीन प्रकार(१) हेतु अहिंसाः (२) स्वरूप अहिंसा (३) अनुबंध अहिंसा जिनमें जीव हिंसा हुई नहीं, पर जीव-रक्षा के प्रयत्न का अभाव है, उसे हेतु हिंसा कहा जाता है । जिसमें जीव-रक्षा का प्रयत्न होते हुए भी जीववध हुआ है उसे स्वरूप हिंसा कहा जाता है एवं जिसमें जीव का वध भी है . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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