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१७६ नहीं होते, बल्कि सेवक पुरुष यथोचित भक्ति कर अपना आत्मकल्याण साधते हैं, वैसे ही श्री वीतरागदेव की पूजा के लिये भी समझने का है।
प्रश्न ४६-भगवान् तो साधु हैं। उनको कच्चे पानी से स्नान करवाने में धर्म किस प्रकार होता है ? .
उत्तर-ऊपर बताये अनुसार भगवान् तो जन्म से पूजनीय होने से, जन्मावस्था आरोपित कर स्नान तथा यौवनावस्था आरोपित कर, उनको वस्त्राभूषण पहनाये जाते हैं। ___ जैसे श्रद्धालु श्रावकों को ज्ञात होता है कि कोई पुरुष या स्त्री दीक्षा ग्रहण करने वाली है, तो उसे एक दो महीने तक घर-घर भोजन कराया जाता है, स्नान कराकर, वस्त्राभूषण पहनाकर, वर-घोड़े पर चढ़ाकर घुमाया जाता है। यह सब सगाई-सम्बन्ध के निमित्त नहीं पर केवल भक्ति के निमित्त ही किया जाता है, पर इसके उपरान्त भी जब वही साधु बन जाता है तब उन सब में से कुछ भी नहीं किया जा सकता अर्थात् भाव निक्षेप के आश्रित कार्य तथा द्रव्य निक्षेप के आश्रित कार्य भिन्न-भिन्न होते हैं । भगवान् को स्नान आदि कराकर अलंकारों से विभूषित करने का कार्य द्रव्य निक्षेप की भक्ति के आश्रित है न कि भाव निक्षेप के आश्रित । मूर्ति की भक्ति चारों निक्षेपों से करने की होती है।
श्री तीर्थकर महाराजाओं ने तो चारों घाती कर्मों का नाश कर डाला है, कर्मबंधन के मूल मोह को जलाकर राख कर दिया है। वीतराग होने के कारण नये कर्मों का बन्धन उन्हें नहीं होता, ऐसा श्री भगवती तथा श्री पन्नवरा आदि सूत्रों में फरमाया है।
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