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अर्थ ऐसा करोगे तो श्री प्रश्नव्याकरण में बालक की, वृद्ध की, रोगी की तथा कुलगणादि की दस प्रकार से साधु को वैयावच्च करनी चाहिये तो क्या केवल नाम स्मरण से वैयावच्च हो जायेगी ? अथवा आहार-पानी, औषधि, अंगमर्दन, शय्या, संथारा आदि करने से होगी ? नाम आदि याद करने से वैयावच्च नहीं गिनी जाती, पर पूर्वोक्त प्रकार से सेवा भक्ति करने से ही गिनी जायगी। सिद्ध भगवान् को वैयावच्च तो उनका मन्दिर बनवाकर, उसमें उनकी मूर्ति स्थापित कर, वस्त्राभूषण, गंध, पुष्प, धूप दोप द्वारा अष्ट प्रकारी व सत्रह प्रकारी आदि पूजा करना, उसे ही कहा जायगा।
(२२) श्री प्रश्नव्याकरण में आदेश है कि निर्जरा के अर्थी साधु को "चेइय?' अर्थात् जिनप्रतिमा की हीलना, उसका अवर्णवाद तथा उसकी दूसरी भी आशातनाओं का उपदेश द्वारा निवारण करना चाहिये।
(२३) श्री आवश्यक मूल सूत्र पाठ में
"अरिहंत चेइयाणं करेमि काउस्सगं"
ऐसा कहकर, साधु तथा श्रावक, सर्वलोक में रही हुई श्री अरिहंत की प्रतिमा का काउस्सग्ग, बोधि बीज के लाभ के लिये करे-ऐसा फरमाया है।
(२४) "थयथुइ मंगलं"
स्थापना की स्तुति करने से जोव सुलभबोधि होता हैऐसा श्री उत्तराध्ययन सूत्र में लिखा है ।
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