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________________ १६८ भावार्थ :-उसके बाद सिद्धार्थ राजा, "दस दिन तक महोत्सव के रूप में कुल मर्यादा का पालन करते हैं जिसमें सौ, हजार अथवा लाख द्रव्य लगे, ऐसे याग–अरिहंत-भगवंत की प्रतिमा की पूजा करते हैं, औरों से करवाते तथा बधाई को स्वयं ग्रहण करते हैं तथा सेवकों द्वारा ग्रहण करवाते हुए विचरण करते हैं। शंका-सिद्धार्थ राजा ने यज्ञ किया था पर पूजा कहाँ की थी? समाधान-सिद्धार्थ राजा श्री पार्श्वनाथ स्वामी के बारह व्रतधारी श्रावक थे, ऐसा श्री आचारांग सूत्र में कहा है। तो विचार करें कि घोड़े, बकरे आदि पशुवध का यज्ञ वे कभी करें या करावें क्या ? लंभ अर्थात् बधाई । व्याकरण के आधार पर यज शब्द देवं पूजयामीति वचनात्, देव पूजा वाची है। श्रावक तो जिनयज्ञ-पूजा करता है। परम सम्बकत्वधारी श्रावक सिद्धार्थ राजा श्री जिनमंदिर में द्रव्य पूजा करने से बारहवें देवलोक (किसी मत से चौथे देवलोक) में जाने का सूत्र में कहा है । यदि हिंसक यज्ञ करने वाले होते तो निश्चय ही नरक में जाने चाहिये, परन्तु सिद्धार्थ राजा के मोक्षगामो जीव होने का, श्री वीर परमात्मा ने फरमाया है। चौबीस तथंकरों के मातापिता निश्चय ही मोक्षगामी जीव ही होते हैं। (१२) श्री व्यवहार सूत्र में कहा है कि साधु जिनप्रतिमा के सम्मुख आलोचना लेता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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