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________________ अन्यतीर्थी परिगृहीत नहीं कहलाते । अतः चैत्य शब्द का अर्थ साधु करना, यह सर्वथा गलत है। ... तर्क-चैत्य शब्द का अर्थ यदि प्रतिमा करें तो उस पाठ में आनन्द ने कहा है कि-'मैं अन्य तीर्थी को, अन्य देव को तथा अन्य तीर्थी के द्वारा ग्रहण की हुई जिन प्रतिमा की वंदना स्तवना नहीं करूंगा व दान नहीं दूंगा। ऐसी दशा में प्रतिमा के साथ बोलने का तथा दान देने का कैसे संभव है ? समाधान-सूत्र का गंभीर अर्थ गुरु बिना समझना कठिन है। सूत्र की शैली ऐसी है कि जो शब्द जिस २ के साथ संभव हों उनको उनके साथ जोड़कर उनका अर्थ करना चाहिये नहीं तो अनर्थ हो जाय । इससे अन्य दर्शी गुरु के लिए बोलने तथा दान देने का निषेध समझना व प्रतिमा के लिये वंदन करने का निषेध समझना । यदि तीनों पाठों की अपेक्षा साथ में लोगे तो तुम्हारे किये हुए अर्थ के अनुसार प्रानन्द का कथन नहीं मिलेगा क्योंकि इस समय हरिहरादि कोई देव साक्षात् रूप से विद्यमान नहीं थे । उनकी मूर्तियाँ थीं। उनके साथ बोलने का तथा दान देने का अर्थ तुम्हारे अनुसार कैसे बैठेगा ? (११) सिद्धार्थ राजा के द्रव्यपूजा करने का वर्णन श्री कल्पसूत्र में इस प्रकार है "तए एं सिद्धथे राया वसाहियाए ठिइवडियाए वट्टमाणीय सइए अ साहस्सिए. अ, सयसाहस्सिए अ, जाए अ..... .... .... नंभे पडिच्छमाणे अपडिच्छावमाणे अ एव वा विहरई" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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