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. अन्य तीर्थी के प्रति अथवा अन्य तीर्थों के देव के प्रति अथवा अन्य तीथियों ने ग्रहण किये हों ऐसे अरिहंत के चैत्य (प्रतिमा) के प्रति वंदना, स्तवना तथा नमस्कार करना अंबड संन्यासी के लिए वजित है परन्तु अरिहंत अथवा अरिहंत की प्रतिमा को नमस्कार करना वजित नहीं है।
छठे अंग श्री ज्ञातासूत्र में द्रौपदी श्राविका के सत्रह भेदों की द्रव्य भाव पूजा में "नमोत्थुणं अरिहंताणं" कहने का पाठ प्राता है :
"तए रणं सा दोवई रायवरकन्ना जेणेव मज्जरणघरे तेरणेव उवागच्छइ, मज्जरणघरं अणुप्पविसइ, हाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगल-पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाइं वत्थाई परिहिया मज्जराघरायो पंडिरिपरिणक्खमइ, जेणेव जिराघरे तेरणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता जिराघरं अणुप्पविसइ अणुपविसइत्ता पालोए जिगपडिमारणं, पणामं करेइ, लोमहत्थयं परामुसइ एवं जहा सुरियाभो जिरणपडिमाअो अच्चेइ तहेव भारिणअव्वं जाव धुवं डहइ, धूवं डहइत्ता वामं जाणु अंचेइ, अंचेइता दाहिरणजाणु धरिणतलंसि निहट्ट तिखुतो मुद्धारगं धररिगतलंसि निवेसेइ निवेसेइत्ता ईसिरपच्चुण्णमइ २ करयल जाव कटु एवं वयासीनमोत्थुरणं अरिहंतारणं भगवंतारणं जावसंपत्तारणं वंदइ रगमंसइ जिनघरायो पडिरिणक्खमइ।" ___इसका भावार्थ इस प्रकार है । इसके बाद वह द्रौपदी नाम की राजकन्या स्नान गृह के स्थान पर आती है और प्राकर मज्जनघर में प्रवेश करती है । प्रवेश कर पहले स्नान करती है । फिर
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