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________________ १६२ "हाया कय बलिकम्मा" । अर्थात् "स्नान करके देव पूजा की " ( ४ ) श्री उववाईसूत्र में चंपानगरी के वर्णन में कहा है कि "बहुलाई श्ररिहंतचे इआई" अर्थात्- 'अरिहंत के बहुत से जिनमन्दिर हैं' तथा शेष नगरियों में जिनमन्दिर सम्बन्धी चंपानगरी की भलामण की है। इससे सिद्ध होता है कि प्राचीन समय में चंपानगरी के साथ साथ दूसरे शहरों में भी गली गली में मन्दिर थे । ( ५ ) तथा श्री आवश्यक के मूल पाठ में कहा है कि "तत्तो य पुरिमताले वग्गुर ईसारण अच्चए पंडिमं । मल्लि जिरणायरण पडिमा उण्णाए वंसि बहुगोठी" ॥१॥ भावार्थ- पुरिमताल नगर के रहने वाले वग्गुर नाम के श्रावक ने प्रतिमा पूजन के लिये श्री मल्लिनाथ स्वामी का मन्दिर बनवाया । - (६) श्री भगवती सूत्र में जंघाचरण और विद्याचरण मुनियों ने श्री जिनप्रतिमा को वंदन करने का अधिकार बीसवें शतक के नवें उद्देश में कहा है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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