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दृष्टि है तथा पूजा मोक्ष के लिये की जाती है।" ऐसा पाठ श्री महाकल्पसूत्र में है जिसका भावार्थ निम्नानुसार है ।
"उस समय तुगीया नगरी में बहुत से श्रावक रहते थे। १ शंख, २ शतक, ३ सिलप्पवाल, ४ ऋषिदत्त, ५ द्रमक ६ पुष्कली, ७ निबद्ध, ८ भानुदत्त, ६ सुप्रतिष्ठ, १० सोमिल, ११ नरवर्म, १२ आनंद और १३ कामदेव प्रमुख जो दूसरे गाँव में रहते हैं, धनवान, तेजवान, विस्तीर्ण व बलवान् हैं। जिन्होंने सूत्र के अनेक अर्थ प्राप्त किये हैं तथा सूत्र के अर्थ ग्रहण किये हैं तथा चतुर्दशी अष्टमी अमावस्या तथा पूर्णिमा की तिथियों के दिन प्रतिपूर्ण पौषध करने वाले, साधु साध्वी को प्रासुक, एषणीय, अशन, पान, खादिम,स्वादिम का प्रतिलाभ करते विच-. रते हैं, जिनमंदिरों में जिनप्रतिमानों की त्रिकाल चंदन, पुष्प, वस्त्रादिक द्वारा पूजा करते हुए निरन्तर विचरण करते हैं।
हे पूज्य ! प्रतिमा-पूजन का उद्देश्य क्या ?
'हे गौतम! जिनप्रतिमा को जो पूजता है वह सम्यग्दृष्टि ; जो नहीं पूजता वह,मिथ्यादृष्टि जानना । मिथ्यादृष्टि को ज्ञान नहीं होता, चारित्र नहीं होता, मोझ नहीं होता; सम्यग्दृष्टि को ज्ञान, चारित्र तथा मोक्ष होता है । इस कारण हे गौतम ! सम्यग्दृष्टि चाले को जिनमंदिर में जिनप्रतिमा की चन्दन, धूप आदि द्वारा पूजा करनी चाहिये।
(श्री नंदीसूत्र में इस महाकल्पसूत्र का उल्लेख किया हुआ होने से मानने लायक है फिर भी नहीं माने तो उसे नंदीसूत्र की प्राज्ञा भंग का दोष लगता है।
श्री भगवती सूत्र में तुगीया नगरी के श्रावकों के अधिकार' में कहा है कि
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