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________________ १५८ भी पूर्वधर हैं । इसलिये उनके वचन सभी प्रकार से माननें योग्य हैं । चूरिणकार भी पूर्वंधर हैं । टीकाकार श्री हरिभद्रसूरि महाराज आदि भी भवभीरु, 'बुद्धि निधान तथा देवसान्निध्य वाले हैं । अत: उनके वचनों को प्रमाण रहित मानना भयंकर अपराध है । प्रत्येक भवभीरु आत्मा का यह कर्तव्य है कि इन प्रामाणिक महापुरुषों के एक भी वचन के प्रति अज्ञानवश भी कोई दुर्भाव नाने पावे इसके लिये संपूर्ण रूप से सतर्क रहें । --- प्रश्न ४३ - प्रागम पैंतालीस कहे जाते हैं फिर भी कई लोग बत्तीस ही मानते हैं तो क्या यह उचित है ? उत्तर - नहीं । बत्तीस श्रागम मानने वाले भी श्री नंदीसूत्र को मानते हैं । जिसमें तमाम सूत्रों की सूची दी गई है । उसमें दिये हुए अनेक सूत्रों में से केवल बत्तीस ही मानना और दूसरों को नहीं मानना, इसका क्या कारण है ? बत्तीस के सिवाय अन्य नये लिखे हुए हैं ऐसा कहा जाय तो ये बत्तीस भी नये. लिखे हुए नहीं हैं, इसका क्या प्रमारण है ? यदि परंपरा प्रमाण है तो इसो प्रामाणिक परंपरा के आधार पर दूसरे सूत्रों को भी मानना चाहिये । बत्तीस सूत्रों के मानने वालों को इन बत्तीस में नहीं कहो हुई ऐसी भी बहुत सी बातें माननी पड़ती हैं । बीस विहरमान का अधिकार, धन्ना - शालिभद्रचरित्र, नेम- राजुल के भव, रामायण श्रादि बहुतसी वस्तुएँ बत्तीस श्रागमों में नहीं हैं फिर भी उनको मानना पड़ता है । बत्तीस सिवाय के अन्य सूत्र परस्पर: नहीं मिलते, इसलिये नहीं मानते यदि ऐसा कहा जाय तो बत्तीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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