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________________ १५७ उत्तर-मूल सूत्रों में कहा है कि 'गणहरा गंथंति अरिहा भासइ ।' श्रीगणधर भगवंत सूत्र को गूथते हैं और श्री अरिहंत भगवंत अर्थ कहते हैं । केवल मूल सूत्र को मानने का कहने वाले छद्मस्थ गणधर भगवंतों का वचन मानने को कहते हैं तथा केवलज्ञानियों द्वारा बताये हुए अर्थ जिनमें भरे हुए हैं ऐसे टीका, चूणि, भाष्य तथा नियुक्ति आदि शास्त्रों को मानने का इन्कार करते हैं। छद्मस्थ गणधरों का कहा मानना और केवलज्ञानी भगवान् का कहा नहीं मानना, क्या यह उचित है । इस कारण शास्त्रों में स्थान स्थान पर नियुक्ति आदि को मानने के लिये उपदेश दिया है। कहा है कि सुतत्थो खलु पढमो, बीओ निज्जुत्तिमीसिओ भणियो। तइयो य निरवसेसो, एस विही होइ अणुओगो ॥३॥ .. अनुयोग अर्थात् व्याख्यान के तीन प्रकार हैं। सर्व प्रथम केवल सूत्र और उसका अर्थ, दूसरा अनुयोग नियुक्ति से मिश्रित तथा तीसरा भाष्य-चूणि आदि सभी से । इस प्रकार अनुयोग अर्थात् अर्थ कहने की विधि तीन प्रकार की है। सूत्र तो केवल सूचना रूप होते हैं। उसका विस्तृत विवरण तो पंचांगी से ही मिलता है। जो पंचांगी को मानने से इन्कार करते हैं वे भी गुप्त रूप से टीका आदि देखते हैं तभी उनको अर्थ का पता लगता है। __ और शास्त्र कहते हैं कि, 'दस पूर्वधर के वचन सूत्र तुल्य होते हैं । नियुक्तियों के रचयिता श्री भद्रबाहुस्वामीजी चौदह पूर्वधर हैं। भाष्यकार श्री उमास्वातिजी वाचक पाँच सौ प्रकरण के रचने वाले दश पूर्वधर हैं। श्री जिनभद्रगरिण क्षमाश्रमण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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