________________
१५६ में भी कई स्थानों पर विरोध दिखाई देता है, इसका क्या कारण ? यह विरोध नियुक्ति, भाष्य और टीका प्रादि को मानें बिना नहीं हट सकता।
कितने ही वचन उत्सर्ग के होते हैं व कितने ही अपवाद के। कितने ही विधिवाक्य होते हैं व कितने ही अपेक्षावाक्य । कितने ही पाठांतर, कितने ही भयसूत्र और कितने ही वर्णन सूत्र होते हैं। इस प्रकार सूत्र अनेक भेद वाले होते हैं। उनके गंभीर प्राशय को समुद्र के समान बुद्धि के धरणी टीकाकार आदि ही समझ सकते हैं, अन्य तो उनके विषय का स्पर्श भी नहीं कर सकते।
इसके उपरांत भी तुच्छ बुद्धि वाले लोग अपनी बुद्धि की कल्पना से चाहे जो कहें पर ऐसे लोग जो कुछ भी कहते हैं उसे असत्य और अप्रामाणिक ही समझना चाहिये ।
प्रश्न ४४-श्री जिनप्रतिमा संबंधी उल्लेख कौन कौन से सूत्रों में हैं ?
उत्तर-सूत्रों में जिनप्रतिमा. और उनकी पूजा के संबंध में सैंकड़ों उल्लेख प्राप्त होते हैं।
भावार्थ-श्री महाकल्पसूत्र में एक स्थान पर श्री गौतमस्वामी पूछते हैं... "हे भगवन् ! तथारूप श्रमण अथवा माहण तपस्वी
चैत्यधर अर्थात् जिनमंदिर में जावें.?" भगवन् कहते हैं-"हाँ गौतम ! सर्वदा प्रतिदिन जावें।"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org