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के हृदय की गहरी भक्ति में से निकली हुई एक सहज और अनिवार्य वृत्ति तथा प्रवृत्ति है। ___ जगत् के सभी प्राणियों की चित्तप्रवृत्ति अपने २ इंष्ट पदार्थो के गुण-धर्म की तरह रूप-रंग के प्रति स्वाभाविक रूप से झुकी हुई होती है । इतना ही नहीं परन्तु छद्मस्थ आत्माएँ वस्तु के गुरग धर्म की पहिचान बहुधा उसके रूप-रंग के आधार पर ही करती हैं। मूर्त पदार्थों के गुण-धर्म भी अधिकांशतः अमूर्त ( इन्द्रिय अगोचर ) होते हैं तो फिर अमूर्त पदार्थों के गुण-धर्म सम्पूर्णतया अमूर्त हों तो इसमें आश्चर्य जैसी बात. ही क्या है ? अमूर्त पदार्थों के अमूर्त गुण-धर्मों का स्वरूप, उनके नाम और आकार को छोड़ कर अन्य प्रकार से जाना जाय, ऐसा उपाय इस जगत् में आज तक खोजा नहीं गया है। अमूर्त अथवा मूर्त दोनों में से एक भी पदार्थ के सभी गुण-धर्मों और उसके स्वरूप का बोध छमस्थ आत्माओं को उनके नाम और आकार के प्रालंबन के बिना लेश मात्र भी नहीं हो सकता । ऐसा होते हुए भी "उसकी भक्ति या उपासना उसके नाम अथवा आकार का प्रालंबन लिए बिना ही हो सकती है" ऐसा मानना एक भयंकर भूल है।
'नाम' की भक्ति को स्वीकार करने वाला आकार की भक्ति को इन्कार नहीं कर सकता :
नाम की भक्ति को स्वीकार करने के बाद आकार की भक्ति की उपेक्षा करना तो और भी भयानक भूल है । उपास्य का नाम केवल उसके गुणों को लक्ष्य कर नहीं होता परन्तु उसके
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