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________________ १५२ रक्खी जाती है । तब फिर इसे भी खुदा की स्थापना ही माना जाय । मक्का मदीना हज करने जाते हैं तथा वहाँ काले पत्थर का चुम्बन करते हैं, टेढ़े होकर नमन करते हैं, प्रदक्षिणा देते हैं और उस तरफ दृष्टि स्थिर रखकर नमाज पढ़ते हैं । उसकी यात्रा के लिये हजारों रुपये खर्च करते हैं । इस पत्थर को पापनाशी मानकर उसका खूब सम्मान करते हैं । जब अनघड़ पत्थर भी ईश्वर तुल्य सम्मान के योग्य है तथा उसके सम्मान से पापों का नाश होता है तो परमात्मा के साक्षात् स्वरूप की बोवक प्रतिमाएँ ईश्वर तुल्य क्यों नहीं ? उसका आदर, सम्मान व भक्ति करने वालों के पापों का नाश क्यों नहीं होगा ? क्या परमेश्वर सर्वत्र नहीं है कि जिससे मक्का मदीना जाना पड़ता है । अतः मानना पड़ेगा कि मन की स्थिरता के लिये मूर्ति के रूप में अथवा अन्य किसी रूप में स्थापना को मानने की आवश्यकता होती ही है । मुस्लिम ताबूत बनाते हैं. वह भी स्थापना ही है । उसे लोभान का धूप कर पुष्प हार आदि चढ़ाकर अच्छे ढंग से उसका प्रदर करते हैं । शुक्रवार को शुभ दिन मानकर सामान्य मस्जिद में तथा ईद के दिन बड़ी मस्जिद में जाकर नमाज़ पढ़ते हैं । वे मस्जिदें भी स्थापना ही हैं। कुरान शरीफ को खुदा का वचन मान कर सिर पर चढ़ाते हैं, वह भी स्थापना ही है । औलीया, फकीर, मीरां साहब, ख्वाजा साहब आदि दरगाहों की यात्रा करते हैं तथा वहाँ स्थित मजारों पर पुष्पहार, मेवा, मिठाई प्रादि चढ़ाकर वन्दन पूजन आदि करते हैं तो वह भी स्थापनातुल्य नहीं तो और क्या है ? मस्जिदों, मक्का, मदीना, फकीरों आदि की तस्वीर खिंचवाकर अपने पास रखते हैं, वह भी स्थापना ही है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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