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१५० है । इसके लिए प्रसिद्ध दृष्टांत सभी प्रकार की लिपियों का है । अपने मन के प्राशय को दूसरे के शब्दों द्वारा स्पष्ट रूप से समझाया जा सकता है और ये शब्द जिन वर्गों के बने होते हैं उन वर्णों को भिन्न २ आकार देने से ही उनके अर्थ का स्पष्ट ज्ञान कराया जाता है। वर्णों को क, ख, ग, घ अथवा A, B, C, D आकार नहीं दिये जावें तथा सबकी प्राकृति एक समान कर दी जाय तो किसी को भी बोध हो सकता है क्या? नहीं । इसलिये निराकार वस्तु का स्पष्ट बोध उसे आकार प्रदान किये बिना नहीं कराया जा सकता।
प्रश्न ४०-इस युग में बुद्धिजीवी लोग मूर्ति को नहीं मानते है, केवल जड़ लोग ही मानते हैं, क्या यह बात ठीक है ?
उत्तर-यह बात सर्वथा असत्य है। किसी भी काल के बुद्धिमान लोगों का कार्य मूर्ति को माने सिवाय चलता ही नहीं। कोई प्रत्यक्ष रूप से मानते हैं और कोई परोक्ष रूप से। सभी अपने २ धर्मोपदेशकों को मानते हैं। वे देहधारी होते हैं और इसलिए उनका आकार भी होता है। अपने मत के उपदेशक को पहचानने के लिए उनके देहाकार का उपयोग किये बिना क्या उनका काम चलता है? नहीं चलता।
यूरोप, अमेरिका, एशिया तथा अफ्रिका आदि भिन्न-भिन्न खण्डों तथा उनमें बसे विभिन्न नगरों, नदियों, पर्वतों आदि का ज्ञान देने के लिए प्रत्येक मनुष्य को उन २ देशों के नक्शों आदि का पालंबन लेना ही पड़ता है। किसी भी नए घर, हाट, हवेली, दुकान, महल अथवा गढ़ को बनाते समय उसके पूर्व उसका प्लान तैयार करना ही पड़ता है। यह मूर्ति नहीं तो और क्या है ?
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