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________________ १४६ सर्वविरति के परिणाम, संयम और तप की ओर वीर्योल्लास, भवभ्रमण का निवारण अथवा मोक्ष सुख की निकटता आदि न होती हो । इन सभी लाभों से कोई भी इन्कार नहीं कर सकता। प्रश्न ३६-निरंजन निराकार की मूर्ति किस प्रकार बन सकती है ? उत्तर-तमाम मतों के देव तथा शास्त्रों के रचयिता निराकार नहीं हुए पर साकार ही हुए हैं। देहधारी के सिवाय कोई भी शास्त्रों की रचना नहीं कर सकता और न मोक्ष मार्ग ही बता सकता है । सभी शास्त्र अक्षर स्वरूप हैं। अक्षरों का समह तालु, प्रोष्ठ, दाँत आदि स्थानों से उत्पन्न होता है और वे स्थान देहधारी को ही होते हैं और इसीलिये ऐसे प्रत्येक व्यक्ति की मूर्ति अवश्य हो सकती है। मोक्षगामी होने के पश्चात् वे अवश्य निराकार बन जाते हैं, फिर भी उनकी पहिचान के लिये मूर्ति की आवश्यकता रहती है। जिस प्रकार शास्त्रों के रचने वाले देह धारियों के मुख से निकले हुए अक्षरों के समूह किसी विशेष प्राकार के नहीं होते हैं यद्यपि उनके आकार की कल्पना करके, उनको शास्त्रों के कागजों पर अंकित किये गये हैं और इसी से उनका बोध होता है। वैसे ही निराकार सिद्ध भगवान् का प्राकार भी इस दुनिया में, उनके अन्तिम भव के अनुसार कल्पना करके मूर्ति रूप में उतारा जाता है । इससे निराकार सिद्ध भगवान् का स्वरूप भी समझा जा सकता है तथा साक्षात् सिद्ध के रूप में उनका ध्यान करने वालों की सभी मनोकामनाएँ भी पूर्ण होती हैं। ऐसा एक नियम है कि किसी भी निराकार वस्तु का परिचय कराना हो तो उसे साकार बनाकर ही किया जा सकता Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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