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केवल इसीलिये कि ऐसे भाविभाव आदि को भी ये तारक जानते थे।
वर्तमान में श्री वीतराग का धर्म अति अल्प प्रमाण में रह गया है। उसमें भी अनेक प्रकार की भिन्न भिन्न शाखाएँ पड़ी हैं तथा छलनी की तरह छेद हो गये हैं। मिथ्यात्व एवं दुराग्रह के अधीन व्यक्ति उत्सूत्र भाषण करने में कुछ बाकी नहीं रखते। तब फिर ऐसे निंदक तथा प्रतिक्रियावादियों को रोककर शासन देव सत्य मार्ग का उपदेश क्यों नहीं देते ? लोगों को महाविदेह क्षेत्र में श्री सीमंधर स्वामी के पास ले जाकर उनके दर्शन कराकर शुद्ध धर्म का प्रतिबोध क्यों नहीं करवाते ? अतः देवताओं के हाथों से भी जो जो चमत्कारी कार्य होने लिखे होते हैं वेही होते हैं, उनसे अधिक नहीं, ऐसा मानना ही चाहिये।
अभी हाल में भी बहुत सी मूर्तियां, जैसे कि श्री भोयरणीजी में श्री मल्लीनाथ भगवान् तथा श्री पानसरजी में श्री महावीर स्वामी भगवान् श्रादि के लिए शासनदेव स्वप्न में आकर अनेक प्रकार के चमत्कार बताते हैं । असंख्य वर्षों से मूर्तियों की रक्षा भी करते हैं। इसके अतिरिक्त कई उपसर्गादि का निवारण भी करते हैं और बहुतों का नहीं भी करते हैं क्योंकि हर बार शासन देव सहायता करें, ऐसा नियम नहीं है।
आज के युग में कई मूर्खलोग श्री जिनमंदिर में चोरी आदि करने का दुष्ट कर्म करते हैं तो उसका फल वे अवश्य भुगतेंगे । इससे शासन देवताओं को कलंक नहीं लगता अथवा इससे स्थापना अरिहंत की महिमा भी नहीं घटती। अरिहंत की महिमा तो तभी कम हो सकती है, जब कि स्थापना अरिहंत के भक्तों को इस भक्ति से वीतराग परमात्मा के गुणों आदि का स्मरण न होता हो, उनको वीतराग भाव, देशविरति अथवा
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