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१४७ प्रश्न ३८-भगवान् की मूर्ति ही यदि भगवान् है तो पापी चोर उनके आभूषण कैसे चुरा कर ले जाते हैं ? लोग उनकी हजारों की रकम कैसे हजम कर जाते हैं ? उनकी मूर्ति को दुष्ट कैसे खण्डित कर जाते हैं ? और यदि भगवान् सर्वज्ञ हैं तो उनकी मूर्ति को धरती से खोदकर क्यों निकालनी पड़ती है ? शासनदेव यह कार्य क्यों नहीं करते ?
उत्तर-यह प्रश्न ही मूर्खतापूर्ण है । श्री वीतराग के गुणों का आरोपण कर भक्ति के लिये जड़ वस्तु से बनी मूर्ति जमीन में से अपने आप क्यों न निकले अथवा उसके अलंकार आदि को चोरी करते हुए पापी लोगों को शासन देवता क्यों नहीं रोकते ? इसका उत्तर यह है कि जड़ स्थापना में यह शक्ति कहां से आवे ? तथा शासनदेव प्रत्येक प्रसंग पर आकर उपस्थित हो जावें, ऐसा नियम कहाँ है ?
भगवान् श्री महावीरदेव के जीवनकाल में उनकी सेवा में लाखों देव उपस्थित रहते थे फिर भी मंखलि पुत्र गोशाला ने भगवान् पर तेजोलेश्या फेंकी और उससे उन्हें खून के दस्त की व्याधि हुई। उस समय शासनदेवों ने कुछ नहीं किया, इससे क्या उनकी भक्ति में अन्तर पा गया ? कितने ही भाव ऐसे होते हैं कि जिनको देवता भी नहीं बदल सकते। जिस समय जो होना है वह किसी काल में भी मिथ्या नहीं होता। स्वयं श्री तीर्थंकर महाराजा से दीक्षा ग्रहण करके अनेक स्त्री पुरुष उनके विरोधी हुए हैं, अनेक प्रकार के पाखडी मत उन्होंने स्थापित किये हैं तथा भगवान् की निन्दा की है : तो क्या सर्वज्ञ भगवान् इस बात को नहीं जानते थे कि 'ये पाखंडी चारित्र की विराधना करेंगे और मिथ्यात्व का प्रचार करेंगे ? सब कुछ जानते थे तो फिर उन्हें दीक्षा क्यों दी?
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