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... १४५ को प्राप्त होते हैं तब अनंती चौबीसी के तीर्थंकर एक ही क्षेत्र (द्रव्य-निक्षेप से) में रहते हैं वैसे (स्थापना-निक्षेप से) एक ही मंदिर में एक सौ आठ अथवा उससे भी अधिक प्रतिमाओं के रहने में कोई बाधा नहीं है। . स्थापना को भी एक साथ रखने में यदि कोई बाधा होती तो श्री जंबूद्वीप में सैंकड़ों पर्वत, नदी, गुफाएँ आदि भिन्न-भिन्न स्थानों पर हैं पर इनको एक ही नक्शे में एकत्रित कर लोगों को कैसे समझाया जाता है ? सूत्रों में सभी तीर्थंकरों के नाम की स्थापना जैसे एक ही कागज़ पर की जाती है तथा नाम अरिहंत एवं द्रव्य अरिहंत को भी एक साथ रहने में जैसे कोई बाधा नहीं पानी है वैसे स्थापना अरिहंत को भी एक ही मकान में रहने में कोई बाधा नहीं आती हैं । जो बाधा है वह भाव अरिहत को ध्यान में रखकर बताई गई है। . ... .
प्रश्न ३७-क्या गुरु का चित्र देखकर शिष्य एवं पिता का चित्र देखकर पुत्र खड़ा होगा ? आदर देगा ? ससुर की तसवीर - देखकर पुत्रवधु घूघट निकालेगी ? यदि नहीं तो फिर मूर्ति को मानने का आग्रह किसलिये ?
उत्तर-शिष्य अपने गुरु की तथा पुत्र अपने पिता की तसवीर का आदर नहीं करेगा तो क्या अपमान करेगा? अथवा कोई शत्र यदि उन तस्वोरों के मुख पर काजल.पोतना चाहेगा तो क्या वे ऐसा करने देंगे? क्या वे इसको सहन करेंगे ? अथवा तसवीरों को केवल कागज तथा स्याही का रूप मानकर सस्ते में लोगों के पैरों तले कुचले जाने हेतु फेंक देंगे। ऐसे कार्य किसी ने किये नहीं और यदि कोई करता है तो वह विचारवानों की निगाह में कपूत एवं हँसी का पात्र अवश्य गिना जायगा। इस प्रकार का याचरण साक्षात् गुरु और साक्षात् पिता का अपमान
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