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________________ १४३ वैसे ही मूर्ति, श्री अरिहंत देव की स्थापना है, उसे स्त्री आदि का स्पर्श होने से दोष किस प्रकार लग सकता है ? ___ साधु हरी वनस्पति को हाथ नहीं लगाते हैं, फिर भी ग्रन्थों अथवा पुस्तकों में स्थान २ पर झाड़ी या वनस्पतियों के चित्र आते हैं तो उनका स्पर्श करने से क्या वनस्पति के स्पर्श का दोष लगता है ? नहीं लगता। इससे सिद्ध होता हैं कि भाव अरिहंत तथा स्थापना अरिहंत आश्रयी को, एक समान दोष आरोपित नहीं हो सकते। ऐसा करने पर महा अनर्थ हो जाता है। दूसरी बात है-ताले चाबी की, भगवान् की स्थापना होने के कारण प्रतिमाजी की रक्षा हेतु मंदिरों को ताला लगाया जाता है। इससे तो उल्टी भक्ति होती है, दोष नहीं लगता तथा भक्ति का परम फल मोक्ष है। । जैसे भगवान् की वाणी की स्थापना रखने वाले सूत्रों की, रक्षा के लिये उन्हें उत्तम वस्त्रों में लपेट कर अलमारी में रख कर ताला लगाया जाता है तथा साधु साध्वियों के चित्रों को सुन्दर फ्रम में मढ़वाकर भव्य दीवानखानों में टांगा जाता है वैसे ही भगवान की प्रतिमाओं की रक्षा के लिये श्री जिन मन्दिर तथा उसके गर्भद्वार पर ताला लगाया जावे या रक्षा हेतु, कोई अन्य प्रबन्ध किया जावे तो इसमें क्या दोष है ? यदि ऐसा नहीं किया जावे तो दुष्ट लोग आशातना आदि करते हैं और उसका दोष रक्षा नहीं करने वाले को लगता है। प्रश्न ३४-क्या मूर्ति में वीतराग के गुण हैं ? उत्तर-एक अपेक्षा से हैं तथा एक अपेक्षा से नहीं भी हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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