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१४२ द्वारा विधिवत् प्रतिष्ठा होने पर, साक्षात् परमात्मा के समान पूजनीय बनती हैं।
प्रश्न ३३–मूर्ति परमात्मा तुल्य हो तो उसे स्त्री का स्पर्श क्यों ? उसे ताले में क्यों रखा जाता है ? ।
उत्तर स्त्री के स्पर्श का दोष, भाव अरिहंत को लेकर है। प्रतिमा तो श्री अरिहंतदेव की स्थापना है। स्थापना अरिहंत को स्त्री के स्पर्श से कोई दोष नहीं लगता । यदि कोई स्थापना अरिहंत तथा भाव अरिहंत दोनों में एक समान दोषों का आरोपण करना चाहता हो तो वह संभव नहीं है।
सूत्रों में सोना, चाँदी तथा स्त्री, पुरुष एवं नपुंसक आदि अनेक वस्तुओं के नाम लिखे होते हैं। वे सभी उन २ नामों के अक्षरों की स्थापना हैं । उनमें चित्र भी होते हैं । यदि स्थापना और भाव में समान दोष लगने की कल्पना की जाय तो उनको हाथ में लेने से साधु साध्वी के महाव्रत समाप्त हो जाने चाहिये, पर ऐसा नहीं है। ___ शास्त्र तो सभी मुनिगण हाथ में लेकर पढ़ते हैं। उसमें देवलोक के देव देवियों के चित्र तथा नारकियों के चित्र आदि का सभी स्पर्श करते हैं वर्तमान पत्रों एवं पुस्तकों में स्त्री पुरुषों के चित्र पत्ते २ पर भरे होते हैं, उनका ब्रह्मचारी, मुनिवर आदि भी स्पर्श करते हैं । तो क्या सबके शीलवत कायम रहते हैं या भंग हो जाते हैं ? चित्रों आदि के स्पर्श से यदि शीलवत नष्ट हो जाता हो तो जगत् में शुद्ध ब्रह्मचर्य को पालने वाला कोई मिलेगा ही नहीं। अतः जैसे चित्र, पुरुषादि की स्थापना हैं और इसका स्पर्श होने से ब्रह्मचारी को दोष नहीं लगता.
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