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१४१ प्रतिमा भी पूजक आत्माओं को स्वभाव से ही शुभ फल देती है।
प्रश्न ३२-जिन प्रतिमा तो साधारण कीमत में बिकती है, तो फिर उसे भगवान् कैसे माना जाय ?
उत्तर-भगवान् को वाणी स्वरूप श्री प्राचारांग, श्री भगवती आदि पुस्तकें थोड़ी कीमत में बिकती है, तो फिर उसे भी पूजनीय कैसे माना जा सकता है ? पुस्तकों द्वारा ज्ञान का प्रचार होता है अतः वे पूजनीय हैं, प्रतिमा द्वारा भव्यात्माओं को परमात्मा के स्वरूप का ज्ञान होता है अतः वह इससे भी अधिक पूजनीय है।
शास्त्र कि जो, कागज पर स्याही से लिखे हुए हैं, उनको भी स्वयं गणघर महर्षिों ने, 'भगवान' कहकर वंदन नमस्कार किया है तो प्रतिमा वंदन-नमस्कार योग्य हो, उसमें शंका ही क्या है ? शास्त्रों में कहा है कि - . 'नमो बंभीलिविए' बंभीलिपि को नमस्कार हो ! 'आयरस्सणं' भगवनो 'भगवान् श्री प्राचाराग' इत्यादि
सुलभ और सस्ती वस्तुएँ भी कई बार बड़े व्यक्तियों के स्वीकार करने पर दुर्लभ तथा कीमती बन जाती हैं । ठीक वैसे ही अल्प मूल्य में मिलने वाली प्रतिमाएँ भी अंजनशलाका तथा प्रतिष्ठा आदि शुभ क्रियाओं के द्वारा अमूल्य एवं परम पूजनीय बनती हैं। राज्याभिषेक होने पर जैसे साधारण व्यक्ति भी राजा गिना जाता है तथा विवाहोत्सव के बाद साधारण घर की कन्या भी राजरानी अथवा बड़े घर की सेठानी गिनी जाती है वैसे ही अल्प मूल्य में मिलने वाली प्रतिमाएँ भी श्री संघ
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