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________________ १४० नहीं । किसी प्रिय अथवा पूज्य व्यक्ति के चित्र में अधिकाधिक यथार्थता लाने वाला व्यक्ति, आनन्द देने वाला तथा पुरस्कार का पात्र बनता है । ठीक उसी तरह वीतरागता की सुन्दर छाया रूप में श्री जिनमूत्ति को बनाने वाला कारीगर आनन्द देने वाला व इनाम का पात्र बनता है । जो श्री वीतराग परमात्मा की मूर्ति को मानने- पूजने प्रदि से इन्कार करने के लिये ऐसे कुतर्क उठाते हैं कि, 'जब मूर्ति पूजनीय है, तो उसको बनाने वाले कारीगर विशेष पूजनीय क्यों नहीं ? उनसे पूछना चाहिये कि, 'तुम जिन शास्त्रों को पूजनीय मानते हो, उनकी नकल करने वाले प्रतिलिपिकार अथवा मुद्रणालय वालों को शास्त्रों से अधिक पूजनीय मानते हो क्या ? साधु महात्मानों के वस्त्रादि उपकरणों को तुम बहुत श्रादरणीय मानते हो परन्तु उनको बनाने वाले बुनकर तथा कारीगर आदि को इनसे भी बढ़कर आदरणीय मानते हो क्या ? यदि नहीं तो श्री जिनमूर्ति के सम्बन्ध में ही ऐसे कुतर्क क्यों ? श्री जिनमूर्ति की पूजनीयता श्री जिनेश्वरदेवों के गुणों के फलस्वरूप ही है, इस बात को समझने वाले व्यक्ति तो कभी भी ऐसे बुरे विचारों में नहीं फँसेंगे । प्रश्न ३१ - प्रतिमा निर्जीव है तो उसकी पूजा क्यों होती है ? उत्तर- जो द्रव्य पूजनीय है, तो वहमजीव हो या अजीव, वह पूजनीय है ही । दक्षिणावर्त शंख, काम कुम्भ, चिन्तामणि रत्न, चित्रावेली आदि पदार्थ अजीव तथा जड़ होने पर भी विश्व में पूजे जाते हैं और उनके पूजने वालों को मन वांछित फल की प्राप्ति भी होती है । जैसे ये निर्जीव वस्तुएँ अपने स्वभाव से पूजक का हित करती हैं वैसे ही श्री जिन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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