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________________ १३६ तो वह व्यक्ति यदि किसी समय, उस मनुष्य के निकट से भी निकल जाय, तो भी उसे पहचान नहीं सकेगा, परन्तु जिस व्यक्ति नेउसकी तस्वीर देखी होगी, वह शीघ्न उसे पहचान जायगा कि, "यह वह व्यक्ति है' इस पर से भी सिद्ध होता है कि प्रत्येक वस्तु का स्वरूप पहचानने के लिये नाम जितना उपयोगी है, उसकी अपेक्षा मूर्ति अथवा आकार अधिक उपयोगी है। प्रश्न ३०-~जब कारीगर द्वारा निर्मित मूर्ति पूजनीय है, तो उसका निर्माता कारीगर विशेष पूजनीय क्यों नहीं ? । - उत्तर-कारीगर प्रतिमा को बनाने वाला है न कि उस व्यक्ति को कि जिसकी वह प्रतिमा है । बीज को धरती में बोया जाता है, खाद डाली जाता है और कृषक के परिश्रम से ही उन बीजों से अन्न उपजाया जाता है। फिर भी अनाज के खाने वाले मिट्टी अथवा खाद आदि खाना पसंद नहीं करते। श्री जिन प्रतिमा बनतो है पत्थर आदि से, उसे बनाता है कारीगर, पर उसका स्वरूप तो श्री वीतराग परमात्मा है। यदि कारीगर श्री वीतराग परमात्मा का ही सर्जक हो तो वह अवश्य पूजनीय है, पर ऐसा तो नहीं है । पतिव्रता स्त्री पति के फोटो का प्रादर करती है पर फोटोग्राफर का नहीं । शास्त्रों को लिखने वाले प्रतिलिपिकार हैं, पर क्या वे पूजनीय हैं? नहीं हैं। क्योंकि शास्त्रों का उद्भवस्थान प्रतिलिपिकार नहीं है। वे तो केवल नकल करने वाले हैं। शास्त्र पूजनीय होने से शास्त्रकार पूजनीय माने जाते हैं, तथा शास्त्रकार पूजनीय होने से उनके द्वारा रचित शास्त्र पूजनीय माने जाते हैं । यह बात बिल्कुल ठीक है। इसी तरह श्री जिनेश्वरदेव पूजनीय होने के कारण उनको प्रतिमा भो पूजनीय गिनी जाती है पर प्रतिमा का बनाने वाला कारीगर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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