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१३८ और समर्थ पुरुष भी जब निरालंबन ध्यान का मनोरथ मात्र किया करते हैं, तो अल्प शक्ति वाले तथा विषय-वासना में डूबे रहने वाले व्यक्तियों के लिये तो निरालंबन ध्यान हो ही कैसे -सकता है ?
प्रश्न २६-कोई विधवा अपने मृत पति की मूर्ति बना कर पूजा-सेवा करे तो क्या इससे उसकी काम शांति अथवा पुत्र प्राप्ति होती है ? नहीं होती तो फिर परमात्मा की मूर्ति से भी क्या लाभ होने वाला है।
उत्तर-यह एक कुतर्क है । इसका उत्तर भी उसी प्रकार देना ‘चाहिये । पति की मृत्यु के पश्चात् उसकी स्त्री एक आसन पर बैठ कर हाथ में माला लेकर पति के नाम का जाप करे तो क्या उस स्त्री की इच्छा पूरी हो जायगी या उसे सन्तान प्राप्ति हो जायगी ? नहीं होगी। तो फिर प्रभु के नाम की जपमाला गिनना भी निरर्थक सिद्ध होगा । प्रभु के नाम से कुछ भी लाभ नहीं होता, ऐसा तो कोई नहीं कह सकता। इसके विपरीत उसी विधवा स्त्री को पति का नाम सुनने से जो प्रानन्द और स्मरण आदि होगा उसकी अपेक्षा दुगुना पानन्द तथा स्मरणादि उसे, उसकी मूर्ति अथवा चित्र देख कर होगा। इस - तरह नाम की अपेक्षा मूर्ति में विशेष गुण निहित हैं।
पुनः किसी व्यक्ति ने कभी सांप को नहीं देखा, केवल -उसका नाम सुना है। इतने मात्र से उस पुरुष के किसी स्थान पर सर्प देखने पर 'यह सर्प है' ऐसा ज्ञान होगा ? नहीं होगा। परन्तु सर्प का आकार जिसने जाना होगा, वह सर्प को प्रत्यक्ष रूप में देखते हो उसे पहचान जायगा।
इस प्रकार जिस व्यक्ति ने मनुष्य विशेष को देखा नहीं, और न उसकी तस्वीर देखी है; केवल उसका नाम सुना है
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