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________________ १३१ कोई भी व्यक्ति यदि अपने जीवन भर की कमाई को ताले बिना की तिजोरी में रक्खे तो कभी न कभी चोर उसे लूटें बिना रहेंगे नहीं । वैसे ही आत्मा रूपी तिजोरी में एकत्रित शुभध्यान रूपी मूल्य धन को प्रतिमा के आलंबन रूपी ताला लगाकर सुरक्षित न बनाया जाय तो प्रमाद रूपी चोरों द्वारा उसका नाश हुए बिना नहीं रहता । इस प्रकार शुभध्यान रूपी धन का नाश होने पर आत्मा को अनंत संसार सागर में भटकना ही शेष रहता है । इसलिये जिनप्रतिमा का आलंबन प्रमादी जीवों के लिये पानी पहले पुल बाँधने के समान अत्यंत हितकारक है, अथवा जिस प्रकार बिना बाड़ के खेत की किसान कितनी ही रखवाली क्यों न करे, पशुपक्षी उसमें प्रवेश कर अनाज का नाश किये बिना नहीं रहते, उसी प्रकार जिन प्रतिमा की प्रालंबन रूपी बाड़ बिना दुर्ष्यान रूपी पशु-पक्षी शुभध्यान रूपी पके हुए धान का नाश किये बिना नहीं रहते । ग्रात्मा अनादि काल से पुद्गल के विषय में आसक्त रहा है । उसे पुद्गल के संसर्ग की श्रासक्ति से मुक्त करने वाला शुभालंबन प्रतिमा के बिना दूसरा कोई नहीं है । उच्च कोटि के शुभालंबनों तथा ज्ञान ध्यान आदि द्वारा पुद्गल का राग छूट जाने पर, भूख की तृप्ति होते ही जैसे प्रनाज की तथा रोग की शांति होते ही जैसे दवा की इच्छा समाप्त हो जाती है, वैसे सभी प्रकार के आलंबन स्वतः ही छूट जाते हैं । पर उसके पहले संसार में लिप्त प्राणियों को शुभ प्रालंबन छोड़ देना हितकर नहीं है । जिस प्रकार साँप अपने आवरण का त्याग करता है वैसे ही ऊच्च भूमिका प्राप्त होते ही आलंबन स्वत: ही छूट जाते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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