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________________ १३० परिणाम से पतित हो जाने के भय से जिन्हें रजोहरण, मुहपत्ति आदि का प्राश्रय लेना पड़ता है, सर्दी, गर्मी और वर्षा के भय से जिन्हें अचेतन वस्त्र तथा मकान आदि का सहारा लेना पड़ता है तथा हिंसक पशु पक्षी अथवा डाकू आदि के भय से जिन्हें शस्त्र इत्यादि की शरण खोजनी पड़ती है, उन्हें तब तक प्रभुगुण की स्मृति के लिये अचेतन मूर्ति का आलंबन लिये बिना छुटकारा नहीं। दूसरे सभी अचेतन आलंबनों को स्वीकार करते हुए भी अचेतन के नाम पर केवल परमात्मा की मूर्ति के आलंबन को; मानने का इन्कार करते हैं; उनके लिये तो परमात्मा के ध्यान की किमत, सांसारिक वस्तु जितनी भी नहीं, ऐसा ही कहा जा सकता है। पुस्तकादि के आलंबन बिना ज्ञानाभ्यास में चूक जाने वाले लोग मूर्ति आदि के आलंबन के अभाव में परमात्म-ध्यान से नहीं चूकेंगे, ऐसा कैसे मान लिया जाय ? परमात्म-ध्यान से हटाने वाली प्रतिपक्षी वस्तुओं के संसर्ग से जो मुक्त नहीं, वे मूर्ति के आलंबन बिना परमात्मा के ध्यान से चूके बिना रह ही नहीं सकते, पर परमात्मा के ध्यान से जीव के चूक जाने पर उसका कितना नुकसान होता है, यह सर्व सामान्य जगत् के ख्याल में नहीं होता। इसीलिये परमात्म-मूर्ति के प्रालंबन के लिए कोई कुतर्क करे तो तुरन्त मन चल-विचल बन जाता है । किन्तु शास्त्र कहते हैं कि संसार के अन्य कार्य भूल जाने पर जीव को इतना नुकसान उठाना नहीं पड़ता जितना परमात्म-ध्यान से चूक जाने पर ! ऐसे अनन्यः प्रतिबोधक प्रालंबन का इस जगत् में प्रभाव हो जाय तो, जीव आत रौद्र ध्यान में चढ़कर अनंत संसार को बढ़ाने वाला बनता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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