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________________ १२८ उसके द्वारा जो २ कार्य सिद्ध होता है उस २ प्रकार की उपमा देने का व्यवहार विश्व प्रसिद्ध है। परमात्मा की मूर्ति से परमात्मा का ज्ञान होता है, इससे उस मूर्ति को भी परमात्मा कहा जा सकता है। पाँचसौ रुपये की हुंडी या नोट को पाँचसौ रुपया ही कहते हैं। वास्तविक रीति से देखने पर रुपये तो चाँदी के टुकड़े हैं व नोट, हुंडी आदि कागज और स्याही के स्वरूप हैं, परन्तु दोनों से काम एक समान निकलता है और इसीलिये दोनों को रुपये हो कहा जाता है, वैसे ही परमात्मा की मूर्ति भी परमात्मा का बोध कराने वाली होने से उसे भी परमात्मा की उपमा दी जा सकती है। प्रश्न २०-आत्मा की उन्नति के लिये पंचेन्द्रिय साधु का अवलंबन स्वीकार करना अच्छा है या एकेन्द्रिय पाषाण की मूर्ति का ? उत्तर-पहली बात तो यह है कि मूर्ति अचेतन होने से एके"न्द्रिय नहीं है । साधु का अवलंबन साधु के शरीर के कारण नहीं, किन्तु उस शरीर को आश्रय देकर रहने वाले साधु के उत्तम सत्ताईस गुणों का है । जो ऐसा न हो तो शरीर तो -अचेतन है। उसके अवलंबन से क्या लाभ होने का है ? मूर्ति भी पत्थर को होते हुए भी उसकी पूजा करते समय पाषण का अवलंबन नहीं लिया जाता, पर जिसको वह मूर्ति है, उस परमात्मा का तथा उस परमात्मा में रहने वाले अनंत गुणों का ही अवलंबन लिया जाता है। इस दृष्टि से साधु के अवलंबन से ‘भी परमात्मा की मूर्ति का अवलंबन चढ़ जाता है, इससे श्री "जिनाज्ञानुसार उसको स्वीकार करने वाला विशेष आत्म कल्याण कर सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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