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________________ १२७ स्मरण का फल मानने वाले को प्राकार तथा उसकी भक्ति का फल भी अवश्य मानना ही चाहिये । प्रश्न १८-वस्तु की अनुपस्थिति में उसके यथार्थ स्वरूप को जानने के उपाय को ही क्या आकार कहते हैं ? उत्तर-प्रत्येक अनुपस्थित वस्तु का यथार्थ स्वरूप केवल उसके नाम द्वारा नहीं जाना जा सकता परन्तु आकार द्वारा ही जाना जा सकता है। सिंह या बाघ का नाम जानकर कोई जंगल में जाये तो, नाम मात्र की जानकारी से वह सिंह या बाघ को नहीं पहचान सकता है। उनकी पहचान के लिये नाम के साथ २ आकार का ज्ञान भी आवश्यक है। इस कारण अनुपस्थित वस्तु का बोध करवाने के लिये अकेला नाम समर्थ नहीं हो सकता। साथ ही आकृति ज्ञात हो, पर नाम मालूम न हो तो उस वस्तु का बोध होना तो सर्वथा अशक्य है। अर्थात् बोधक शक्ति नाम की अपेक्षा आकार में विशेष रूप से है। प्रश्न १६-क्या जड़ को चेतन की उपमा दी जा सकती है ? उत्तर-वस्तु के धर्म अनंत हैं। प्रत्येक धर्म के कारण वस्तु को, भिन्न २ अनंत उपमाएँ दी जा सकती हैं। एक लकड़ी पर बालक सवारी करता है तब लकड़ी जड़ होते हुए भी उसे चेतन घोड़े की उपमा दी जाती है । पुस्तक अचेतन होते हुए भी उसे ज्ञान या विद्या की उपमा दी जाती है । इसी प्रकार सम्यग्ज्ञान तथा धर्म, ये आत्मिक वस्तुएँ होते हुए भी, उन्हें कल्पवृक्ष एवं चिंतामणि रत्न की उपमा दी जाती है। वस्तु के अनंत गुरणों में से कोई भी गुण लेकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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