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________________ १२६ इससे स्पष्ट होता है कि, आकार हीन वस्तु, कोई वस्तु नहीं है । नाम एवं प्राकृति द्वारा गुण का बोध होता है । नाम के साथ प्राकृति लगी ही होती है। इससे जहाँ तक नाम मानने की आवश्यकता स्वीकृत है, वहाँ तक आकृति मानने की आवश्यकता भी स्वीकार की हुई है। प्राकृति मानने की आवश्यकता तभी छुट सकती है जब नाम मानने को आवश्यकता भी छूट गई हो। __ 'नाम गुरण का होता है पर आकार का नहीं, ऐसा कहने वाले को सोचना चाहिये कि, गुण से तो श्री ऋषभदेव और वर्धमान स्वामी समान हैं फिर; श्री वर्धमान स्वामी का नाम लेते ही भगवान् ऋभदेव क्यों याद नहीं आते' ? यदि गुण का नाम 'महावीर' या 'वर्धमान' होता तो इस गुण वाले सभी व्यक्ति इन नामों के साथ ही याद आ जाने चाहिये । परन्तु 'महावीर' अथवा 'वर्धमान' नाम लेने से केवल भगवान् 'महावीर' याद पाते हैं, इसका क्या कारण है ? इसका कारण एक ही है कि, 'महावीर' नाम केवल उनके गुण का ही नहीं पर आकार का भी है। भगवान् 'महावीर' का आकार और भगवान् 'ऋषभदेव' का आकार एक नहीं है, इसीलिये एक का नाम लेते समय दूसरे याद नहीं आते हैं। . इससे मानना पड़ेगा कि नाम गुण प्रधान नहीं पर आकार हो प्रधान होता है। इसके उपरान्त भी जो नाम मानकर भी आकार को मानने से इन्कार करते हैं, वे मूर्ख हैं । जहाँ प्राकृति नहीं, वहाँ नाम नहीं और जहाँ नाम नहीं, वहाँ प्राकृति नहीं इस प्रकार दोनों का पारस्परिक संबंध है। पर नाम तथा गुण में ऐसा पारस्परिक संबंध नहीं है। अतः नाम और उसके, Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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