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________________ १२३ · ऐसा प्रश्न करने वाले को समझना चाहिये कि जिसने सत्यदेव के यथार्थ स्वरूप को नहीं जाना और उनकी प्रतिमा को अपने इष्टदेव के रूप में स्वीकार नहीं किया ऐसी आत्माओं को श्री जिनमूर्ति से लाभ न हो तो उसका कारण उनकी अयोग्यता है । जो परमात्मा के स्वरूप को वास्तविक रूप से जान पहचान कर परमात्मा की प्रतिमा को वंदन, पूजन करते हैं, उनको आर्द्र कुमार की भाँति अवश्य शुभध्यान उत्पन्न होता है तथा अचिंत्य लाभ मिलता है, इसमें लेशमात्र भी संदेह नहीं । प्रश्न १५ - श्री जिनप्रतिमा को यदि कोई अन्य धर्मावलम्बी अपने मंदिर में स्थापित करे तो वह वन्दनीय गिनी जायगी कि नहीं ? उत्तर-अन्य मत वालों द्वारा ग्रहण की हुई तथा स्वयं के देवरूप में स्वीकार की गई श्री जिनमूर्ति को श्रावक नहीं नमेगा क्योंकि वे लोग उस मूर्ति को अपने इष्टदेव के रूप में मान कर अपने मन की विधि के अनुसार उसकी पूजा करेंगे तथा वह विधि जैनों को मान्य नहीं होगी ; अतः जहाँ विधिवत पूजा नहीं होती हो ऐसी अन्यमतावलबियों द्वारा ग्रहण की हुई जिन प्रतिमानों को मानने, पूजने का शास्त्रों में निषेध किया है । शास्त्रों के विषय में ऐसा नियम है कि, - 'सम्यग् दृष्टि से ग्रहण किया हुआ मिथ्याश्र ुत भी सम्यक्त है, तथा मिथ्यादृष्टि से ग्रहण किया हुआ सम्यक् त भी मिथ्याश्रुत हैं । वही नियम श्री जिनमूर्ति को लागू पड़ता है । अन्य धर्माचलम्बियों द्वारा ग्रहण की हुई प्रतिमानों में से प्रतिमापन चला नहीं जाता तब भी अविधिपूजन के कारण तथा अन्य जीवों के मिध्यात्व की वृद्धि में कारण-भूत होने से सम्यग्दृष्टि आत्माओं ने उन प्रतिमाओं के पूजन को त्याज्य बताया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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