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१२० द्रव्य पूजा समाप्ति के पश्चात् भावपूजा करते समय भक्त भगवान् के गुणों का स्मरण कर अपनी आत्मा के साथ उनकी तुलना करता है कि, 'अहो! प्रभु वैरागी हैं और मैं रागी हूँ; प्रभु द्वेष रहित हैं और मैं द्वष पूर्ण हूँ;प्रभु क्रोध रहित हैं और मैं क्रोधी हूँ; प्रभु निष्काम हैं और मैं कामी हूँ; प्रभु निविषयी हैं और मैं विषयी हूँ; प्रभु मान रहित हैं और मैं मानी हूँ; प्रभु माया से परे हैं और मैं मायावी हूँ; प्रभु निर्लोभी हैं और मैं लोभी हूँ; प्रभु आत्मानंदी हैं और मैं पुद्गलानंदी हूँ; प्रभु अतीन्द्रिय सुख के भोगी हैं और मैं विषय सुख का भोगी हूँ; प्रभु स्वभावी हैं और मैं विभावी हूँ; प्रभु अजर हैं और मैं सजर हूँ; प्रभु अक्षय हैं और मैं क्षय को प्राप्त होते रहने वाला हूँ; प्रभु अशरीरी हैं और मैं सशरीरी हूँ; प्रभु अनिंदक हैं और मैं निंदक हँ; प्रभ अचल हैं और मैं चंचल हैं; प्रभ अमर हैं
और मैं मरणशील हूँ; प्रभु निद्रा रहित हैं और मैं निद्रा सहित हूँ; प्रभु निर्मोही हैं और मैं मोहवाला हुँ; प्रभु हास्य रहित हैं और मैं हास्य सहित हूँ; प्रभु रति रहित हैं और मैं रति सहित हूँ; प्रभु शोक रहित और मैं शोक सहित हूँ; प्रभु भय रहित हैं
और मैं भयभीत हूँ; प्रभु अरति रहित हैं और मैं अरति सहित हूँ; प्रभु निर्वेदी हैं और मैं सवेदी हूँ; प्रभु क्लेश रहित हैं और मैं क्लेश सहित हूँ; प्रभु अहिंसक हैं और मैं हिंसक हूँ; प्रभु वचन-रहित हैं और मैं मृषावादी हूँ; प्रभु प्रमाद रहित हैं और मैं प्रमादी हूँ; प्रभु आशा रहित हैं और मैं आशावान हूँ; प्रभु सभी जीवों को सुख देने वाले हैं और मैं अनेक जीवों को दुःख देने वाला हूँ; प्रभु वंचना रहित हैं और मैं वंचक हूँ; प्रभु आश्रव रहित हैं और मैं पाश्रव सहित हूँ; प्रभु निष्पाप हैं और मैं पापी हूँ; प्रभु कर्म रहित हैं और मैं कर्म सहित हूँ; प्रभु सभी
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