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११८ है । जैसे अपने पूर्वजों का चित्र देखकर सभी उसकी प्रशंसा करते हैं, उसे सुनकर चित्त प्रसन्न होता है तथा पूर्वजों को आदर मिलता हो, ऐसा प्रतिभास होता है वैसे ही भगवंत की प्रतिमा का आदर करने से भगवान् का ही आदर होता है, ऐसा लगना चाहिये।
भगवान को आदर देने की इच्छा जगी, यह भी परमशुभ अध्यवसाय का लक्षण है और उससे जीव भारी पुण्य उपाजित करता है। गृहस्थाश्रम भोगने वाले श्रावकों के लिये भगवान् का गुणगान करने हेतु अनुकूल स्थान श्री जिनमंदिर को छोड़कर अन्य कोई नहीं है ।
भगवान् के गुणों का स्मरण तथा ध्यान करने के लिये श्री जिन मंदिर में जिन प्रतिमा की स्थापना की गई है। उसके दर्शन के साथ ही भगवान् के गुण याद आते हैं । ___ श्री जिन मूर्ति की मुखाकृति देखकर विचार पैदा होता है, 'अहो ! यह मुख कितना सुन्दर है कि जिसके द्वारा किसी के लिये भी अपशब्द नहीं बोला गया तथा जिससे कभी हिंसक, कठोर अथवा कड़वे वचन नहीं निकले । उसमें रही जीभ से रसनेन्द्रिय के विषयों का कभी भी राग द्वेष से सेवन नहीं किया गया परन्तु उस मुख द्वारा धर्मोपदेश देकर अनेक भव्य जीवों को इस संसार सागर से पार उतारा गया है, इसलिये वह मुख हजारों बार धन्यवाद का पात्र है।' ___'भगवान् की नासिका द्वारा सुगंध या दुर्गंध रूप घ्राणेंद्रिय के विषयों का राग अथवा द्वेष पूर्वक उपभोग नहीं किया गया ___ 'इन चक्षुत्रों द्वारा पाँच वर्ष रूप विषयों का पल भर के लिये भी राग अथवा द्वेष पूर्वक उपभोग नहीं किया गया।
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