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सही बातें चली जाती हैं, यह सहज-स्वाभाविक है। श्री जिन"प्रतिमा-पूजन एक सर्वोत्तम धर्मानुष्ठान है। इस कोटि का धर्मानुष्ठान और कोई अन्य हो, यह त्रिभुवन में भी असंभवित है। उसके सम्मुख अज्ञानता, पूर्वग्रह, कुशिक्षण, जड़वाद, उपेक्षा प्रोर "धर्म-प्रवगणना आदि अनेक अनिष्टकारी बातें मुह बाये खड़ी हैं। इन सब से स्वयं बचने और दूसरों को बचाने के लिए तैयार होने की जरूरत है। ऐसे समय में श्री जिन-प्रतिमा"पूजन की श्रेष्ठता सिद्ध करने वाला यही नहीं, किन्तु अनेक "प्रकार का साहित्य प्रकाशित करने की अावश्यकता है। इस कार्य का एक अंश भी इस पुस्तक द्वारा पूरा हो, तब भी यह *प्रयास सफल हुआ ही समझा जायगा।
इस पुस्तक में दी गई प्रश्नोत्तरी आज से बहुत वर्ष पहले "प्रकाशित 'मति-मण्डन-प्रश्नोत्तर' नामक ग्रन्थ के आधार "पर तैयार की गई है। इसमें जो कमी रह गई हो, तो उसके लिए 'मिच्छामि दुक्कड़" देने के साथ, पाठकों को वे कमियां गीतार्थ गुरुओं के पास से सुधार लेने को खास भलामण है।
करमचंद जैन हॉल । अंधेरी : सं० १९६७-पौष सुद ८ ता० ६-१-१९४१
मुनि भद्रकरविजय
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