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"प्रतिमा-पूजन" 'प्रतिमा पूजन की पारमार्थिक श्रेयः साधकता' अज्ञान का साम्राज्य और कुयुक्तियों का प्राबल्य : ____ इस दुनियां में जानी जितना उपकार कर सकते हैं उससे अधिक अपकार अज्ञानी कर सकते हैं। सुयुक्तियों की संख्या की अपेक्षा कुयुक्तियों की संख्या अधिक है। सम्यग्दृष्टि आत्माओं की अपेक्षा मिथ्यादृष्टि आत्माएँ अनन्तगुनी हैं यह बात जितनी सत्य है उतनी ही सत्य बात यह भी है कि ज्ञानियों का ज्ञानसूर्य और उसकी जाज्वल्यमान किरणें जहां फैलती हैं वहां कैसा भी घोर अन्धकार क्यों न हो वह एक क्षण भर में दूर हुए बिना नहीं रह सकता। "श्री वीतराग की मूर्ति की पूजा करें या नहीं ?" ___इस विषय को भी बहुतों ने विवादास्पद बना रखा है। सिद्धान्तवेदी समग्न महापुरुषों ने एक मत और एक ही स्वर में फरमाया है कि "श्री वीतराग देव की आराधना मुख्यतया उनकी मूर्ति के द्वारा ही सम्भव है । इसके सिवाय अन्य कोटि उपायों से भी वह सुशक्य नहीं है।" दूसरी ओर अज्ञानी और मिथ्यादष्टि प्रात्मानों ने इसके विपक्ष में अनेक कुयुक्तियाँ उपस्थित कर ज्ञानी पुरुषों द्वारा प्रदर्शित पवित्रमार्ग को अवरुद्ध . करने का प्रयास करने में जरा भी कमी नहीं रखी है।
ज्ञान की अपेक्षा अज्ञान का साम्राज्य जगत् में विशेषतः व्याप्त है, इसलिए कुतर्कों का प्रभाव अज्ञानी और सरल वर्ग
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