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________________ (iv) किलना भूल भरा है, उसे समझाने का शक्य प्रयास किया गया है और प्रतिमा पूजन से होने वाले उत्तरोत्तर लाभों का युक्ति, अनुभव और शास्त्र के आधार से हो सके उतना सत्य समर्थन किया गया है। प्रतिमा पूजन के पक्ष सम्बंधी आज तक बहुतसा साहित्य शास्त्र के अनुसार प्रकाशित हो चुका है । इस ग्रन्थ में उसी बात को भिन्न प्रकार से समझाया गया है श्री जिन - प्रतिमा पूजन, यह एक ऐसा विषय है कि उस पर अनेक महापुरुषों ने अनेक प्रकार से विचार किया है और उसकेलाभ ढूंढने के लिए अपना जीवन लगाया है । उसके हार्द में जैसे जैसे महरे उतरले गये हैं, वैसे वैसे उन्हें नया नया अनुभव दर्शन प्राप्त होता गया । इससे होने वाले सम्पूर्ण लाभों का अंत ढूंढना, बड़े बड़े योगियों को भी भ्रमस्य हुआ है । ऐसे एक गृहून, अनंत उपयोगी और सब का ही एकान्त कन्या करते रविकि विजार किया जा मौर उसके - लाभ वदने के लिए जिवी अधिक सूक्ष्म गति दौड़ाई जावे,. उतनी कम ही है । प्रस्तुत ग्रन्थ में जो कुछ विचारणा की गई है, वह आजतक प्रकाशित हुई शास्त्रानुसारी साहित्य को ध्यान में रखकर हीं की गई है । प्रतिमा पूजन यह साधुओं और गृहस्थों दोनों के लिए सामान्य और नित्य धर्म है। इस नित्य-धर्म में जितनी श्रद्धा और समझ की शुद्धि और वृद्धि होती रहे, उतनी शुद्धि करने की आज के युग में अत्यंत आवश्यकता है । वर्तमान समय धर्म के विषय में बहुत कम विचार किया जाता है । बहुत कम ऐसे प्रारणी दृष्टिगोचर होते हैं, कि जो धर्म के विषय में गहरे उतरने का प्रयास करते हों । ऐसी स्थिति में धर्म के नाम पर गलत बातें जीवन में आ जाती हैं और - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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