SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११५ दूसरी बात यह है कि जिस प्रकार मूर्ति को गुणस्थानक नहीं उसी प्रकार कागज आदि से बनी पुस्तकों का भी अपना कोई गुणस्थानक नहीं है । फिर भी प्रत्येक धर्म के अनुयायी अपने ग्रन्थों का बहुत आदर करते हैं, ऊँचे आसन पर रखते हैं तथा मस्तक पर चढ़ाते हैं । उसकी सभी प्रकार की आशातनाएँ वर्जित हैं । थूक के छांटे या पैर से ठोकर लगना भी महादोष रूप गिना जाता है । विश्व में ऐसा कोई धर्म नहीं है, कि अपने इष्टदेव की वाणी रूप शास्त्र को मस्तक पर नहीं चढ़ाता हो तथा उसका खूब आदर-सम्मान न करते हो । श्री जैन सिद्धांत के श्री भगवती सूत्र में भी 'नमो बंभीए लिवीए' कह कर श्री गणधर भगवंतों ने अक्षर रूपी ब्राह्मी लिपि को नमस्कार किया है तो इसमें कौनसा गुणस्थानक था ? मृतक साधु का शरीर भी अचेतन होने से गुरणस्थानक रहित है, फिर भी लोग दूसरे काम छोड़कर उनके दर्शन के लिये दौड़ कर जाते हैं, तथा उस मृत देह को बड़ी धूमधाम से चंदन की चिता में जलाते हैं । इस कार्य को गुरु भक्ति का कार्य कहेंगे कि नहीं ? यदि इसे गुरु भक्ति कह सकते हैं, तो प्रतिमा के वंदन पूजन आदि को जिन भक्ति का कार्य क्यों नहीं कहते सकते हैं ? प्रश्न १२ – मूर्ति तो पत्थर की है, उसकी पूजा से क्या फल मिलेगा ? मूर्ति के आगे की गई स्तुति क्या मूर्ति सुन सकती है ? उत्तर - लोगों को पथ भ्रष्ट करने के लिये इस प्रकार के प्रश्न मूर्ति पूजा के विरोधी वर्ग की ओर से खड़े करने में आते हैं, परन्तु उसके पीछे घोर अज्ञान एवं कुटिलता छिपी हुई है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy