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________________ ११० भगवान् की तीन मूर्तियों की स्थापना करते हैं, ऐसा श्री समवसरण प्रकरण, श्री समवायांग सूत्रटीका, श्री तत्त्वार्थ सूत्रटीका आदि प्राचीन ग्रंथ प्रमाणित करते हैं। कई लोग यह कहते हैं कि 'भगवान् के अधिक से अधिक चार मुख दिखाई देते हैं पर तीन ओर मूर्ति है ऐसा नहीं है" यह बात भी झूठी है। कारण यह है कि किसी भी शास्त्र में इस प्रकार का उल्लेख नहीं है। __समवसरण की रचना से भी चित्त की एकाग्रता के लिये मूर्ति की आवश्यकता सिद्ध हो जाती है । भगवान् की भव्य मूर्ति के दर्शन से उनके गुरण याद आते ही श्रद्धालु लोगों को भगवान् के साक्षात्कार जैसा आनन्द प्राप्त होता है तथा मूर्ति को साक्षात् भगवान् समझ कर भावयुक्त भक्ति होती है। उस समय भक्ति करने वाले के मन के अध्यवसाय कितने निर्मल होते होंगे तथा उस समय वह जीव कैसे शुभ कर्मों का उपार्जन करता होगा, इसका सच्चा और पूरा ज्ञान सर्वज्ञ के सिवाय अन्य किसी के पास नहीं है। ___जो लोग स्वकल्पित कल्पना से परमात्मा का मानसिक ध्यान करने का प्राडम्बर करते हैं, वे सैकड़ों अथवा हजारों कोस वाहन आदि में बैठकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों का नाश कर अपने गुरु आदि की वन्दना करने किस लिये जाते होंगे ? क्या गुरु का मानसिक ध्यान घर बैठे शक्य नहीं कि जिस कारण गुरु के मूर्तिमय शरीर की वन्दना हेतु हिंसा करके हजारों कोस जाने की जरूरत पड़ती है। सांसारिक जीव अनेक चिताओं से ग्रस्त होते हैं । किसी प्रालंबन के अभाव में उनको शुभ ध्यान की प्राप्ति होना प्रासान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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