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यदि कहोगे कि यह पुद्गलद्रव्य साधु का ही है तो फिर मूर्ति भी देवाधिदेव श्री वीतराग प्रभु की ही है, ऐसा क्यों नहीं सोच सकते हो ? मुनि की काया को वंदन करने से जैसे मुनि को वंदन होता है वैसे ही श्री वीतराग प्रभु की मूर्ति को वंदन करने से साक्षात् श्री वीतराग प्रभु को ही वंदन होता है।
प्रश्न १०-निराकार भगवान् की उपासना ध्यान द्वारा हो सकती है तो फिर मूर्ति पूजा मानने का क्या कारण?
उत्तर-मनुष्य के मन में यह ताकत नहीं कि वह निराकार का ध्यान कर सके । इन्द्रियों से ग्राह्य वस्तुओं का विचार मन कर सकता है। उसके अतिरिक्त वस्तुओं की कल्पना भी मन को नहीं आ सकती। ___जो जो रंग देखने में आते हैं, जिन २ वस्तुओं का स्वाद लिया जाता है, जिन २ वस्तुओं का स्पर्श किया जाता है, जो गंध सूधने में आती है अथवा जो शब्द सुनने में आते हैं, उतने तक का ही विचार मन कर सकता है, उनके अतिरिक्त रंग, रूप अथवा गंध आदि का ध्यान, स्मरण अथवा कल्पना करना मनुष्य की शक्ति के बाहर की बात है। __ यदि किसी ने 'पूर्णचन्द्र' नाम के व्यक्ति का केवल नाम सुना हो, उसे आँखों से देखा भी न हो और न कभी उसका चित्र देखा हो तो क्या नाम मात्र से 'पूर्णचन्द्र' नाम के व्यक्ति का ध्यान आ सकता है ? नहीं। उसी प्रकार भगवान् को साक्षात् अथवा मूर्ति द्वारा जिसने देखा नहीं हो वह उनका ध्यान किस प्रकार कर सकता है ?
जब २ ध्यान करना होता है तब तब कोई न कोई वस्तु नजर सम्मुख रखनी ही होती है। भगवान् को ज्योति स्वरूप मान
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