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१०७ प्रश्न :-श्री जिनप्रतिमा को जिनराज समझकर नमस्कार करो तो वह नमस्कार मूर्ति को हुआ, भगवान् को नहीं, क्यों कि भगवान् तो मूर्ति से भिन्न हैं । मूर्ति को नमस्कार करने से भगवान् को नमस्कार नहीं होता और भगवान् को नमस्कार करने से मूर्ति को नमस्कार नहीं होता। इसका क्या समाधान
उत्तर-मूर्ति और भगवान् सर्वथा भिन्न नहीं है । इन दोनों में कुछ समानता है। श्री जिनमूर्ति को नमस्कार करते समय श्री जिनेश्वर भगवान् का भाव लाकर नमस्कार किया जाता है अतः दोनों भिन्न नहीं कहे जाते ।
जैसे यहाँ बैठे महाविदेह क्षेत्र में बिराजमान श्री सीमंधर स्वामी को सभी जैन वंदन-नमस्कार करते हैं तब राह में लाखों घर, वृक्ष, पर्वत आदि अनेक वस्तुएँ बीच में आती हैं तो नमस्कार उन वस्तुओं को हुअा या श्री सीमंधर स्वामी को? यदि कहोगे कि नमस्कार करने का भाव भगवान् को होने से भगवान् को ही नमस्कार हुआ, अन्य वस्तु को नहीं; तथा केवलज्ञान से भगवान् भी उस वंदना को इसी रीति से जानते हैं तब इसी तरह मूर्ति द्वारा भी भगवान् का भाव लाकर वंदन पूजन करने में आवे तो इसे क्या भगवान् नहीं जानते ! ___ इसी तरह साधु को वंदन नमस्कार करते हुए भी उनके शरीर को वंदन होता है या उनके जीवन को ? यदि शरीर को नमस्कार किया जाता हो तो जीव तो शरीर से पृथक वस्तु है और जो जीव को नमस्कार करने में प्राता हो तो बीच में काया का अवरोध उपस्थित है और काया जीव से भिन्न पुद्गल द्रव्य है।
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