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________________ १०४ द्वारा दी हुई विश्वस्तता रूपी हुंडी को कौनसा विचारशील व्यक्ति अस्वीकार करेगा ? । भगवान् के विश्वस्तता 'रूपी प्रबल कारण को लेकर बाकी के तेईस तीर्थंकर प्रथम तीर्थंकर के समय में भी वंदनीय थे। इस सम्बन्ध में श्री आवश्यकसूत्र में मूल पाठ भी है कि 'चत्तारि-अट्ठ-दस-दोय, वंदिया जिणवरा चउव्वीसं ।' अर्थात्- चारों दिशाओं में क्रम से चार, पाठ, दस और दो इस प्रकार चौबीस तीर्थंकरों के बिंब श्री भरत महाराजा ने अष्टापद पर्वत पर स्थापित किये हैं। इस विषय में नियुक्तिकार श्र तकेवली आचार्य भगवान् श्रीमद् भद्रबाहुस्वामीजी महाराज ने खुलासा किया है कि 'भरत राजा ने श्री ऋषभदेव स्वामी को भावि में होने वाले तैबीस तीर्थकरों के नाम, लक्षण, वर्ण, शरीर का प्रमाण आदि पूछकर उसी के अनुसार, अष्टापद गिरि पर श्री जिन मंदिर बनाकर सभी तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ ठीक वैसे ही आकर की स्थापित की थीं। इससे सिद्ध होता है कि तेईस तीर्थंकरों के होने से पूर्व भी उनकी पूजा तथा मूर्ति तथा मंदिर द्वारा उनकी भक्ति करने की प्रथा सनातन काल से चली आ रही है और इसे महान् ज्ञानी पुरुषों ने भी स्वीकार किया है । प्रश्न ७–'सिद्धायतन' शब्द का क्या अर्थ है ? उत्तर-'सिद्धायतन' यह गुणनिष्पन्न नाम है। इसका अर्थ जिनमंदिर होता है । 'सिद्ध' अर्थात् सिद्ध भगवान् की प्रतिमा और 'आयतन' अर्थात् घर । अर्थात् जिनघर या जिन मंदिर, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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