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________________ १०३ गुरु की स्थापना बिना कैसे हो सकती है। यदि कहोगे कि “गुरु- अवस्था की प्राकृति की मन में कल्पना कर आज्ञा आदि मांगूंगा' तब तो स्थापना निक्षेपा का सहज रूप से स्वीकार हो गया । फिर मृत्यु उपरांत अन्य गति में गये हुए गुरुओं को याद करके उनका गुणगान करने में आता है तो उसको किस निक्षेपा के अधीन समझेगे ? गुरुपने का भाव निक्षेपा तो उस समय उपस्थित होता ही नहीं। भाव निक्षेपे से तो गुरु अन्य गति में हैं। इतना होने पर भी 'गुरुपने को पूर्ण अवस्था की मन में कल्पना करके गुणगान आदि करने में आता है', ऐसा कहने से स्थापना निक्षेपों एवं द्रव्य निक्षेपों दोनों मानने लायक सिद्ध हो जाते हैं। प्रश्न ६-श्री ऋषभदेव स्वामी के समय में शेष तेईस तीर्थंकरों के जीव संसार में थे; फिर भी उस समय उनको वंदन करने में धर्म कैसे हो सकता हैं ? उत्तर - श्री ऋषभदेव स्वामी के समय में अन्य तेईस तीर्थकरों के वंदन का विषय द्रव्य निक्षेपा के आधीन है। द्रव्य बिना भाव, स्थापना अथवा नाम कुछ भी नहीं हो सकता। श्री ऋषभदेव स्वामी ने जिन जीवों को मोक्षगामी बताया, वे सभी पूजनीय हैं । जिस प्रकार धनाड्य साहूकार के हाथ से लिखी हुई, उसके हस्ताक्षर व मोहर वाली; अवधि विशेष की हुंडी हो तो उसकी अवधि पूर्ण होने के पूर्वंभी रकम से काम निकाला जा सकता है, उसी प्रकार मोक्षगामी भव्य जीवों को ऋषभदेव स्वामी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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