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________________ मकान में स्त्री की मूर्ति होने पर उस ओर टकटकी नजर से बारम्बर देखने का तथा उसमें चित्त के एकाग्र तथा लीन बनने की ज्यादा संभावना रहती है तथा परिणाम स्वरूप मन में विकार उत्पन्न होते हैं, ऐसे अनिष्टों का पूरा पूरा भय रहता है। सूत्रकार महर्षियों की आज्ञा निष्प्रयोजन अथवा विचार रहित नहीं हो सकती। इस पर से यह निश्चित हो जाता है कि मन को स्थिर कर शुभ ध्यान में लाने हेतु शुभ और स्थिर आलंबन की विशेष आवश्यकता है। ऐसा स्थिर एवं शुभ आलंबन श्री जिनराज को शांत मूर्ति के सिवाय दूसरा एक भी नहीं। इससे दूसरी बात यह भी सिद्ध होती है कि उत्तम ध्यान एवं मन की एकाग्रता करने की अपेक्षा से श्री जिनमूर्ति की श्रेणी साक्षात् जिनराज से भी बढ़ जाती है और इसी कारण श्री रायपसेरणी आदि शास्त्र ग्रंथों में साक्षात् तीर्थंकर देव को वंदन नमस्कार करते समय 'देवयं चेइयं' जैसे पाठ हैं अर्थात् जैसी मैं जिनप्रतिमा की भक्ति करता हूँ वैसी ही अंतरंग प्रीति से आपकी (साक्षात् अरिहंत की) भक्ति करता हूँ । पुनः साक्षात् भगवान् को नमस्कार करते समय "सिद्धि गई नामघेयं, ठाणं संपाविउ कामस्स ।' अर्थात्-'सिद्धि गति नाम के स्थान को प्राप्त करने की इच्छा वाले' इस प्रकार बोला जाता है और श्री जिनप्रतिमा के आगे __ 'सिद्धि गई नामधेयं ठाणं संपत्तारणं ।' अर्थात्-"सिद्धि गति नाम के स्थान पर पहुँचे हुए" इस प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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