SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ उत्तर अवस्था को भी इन्द्र आदि देव भक्ति भाव से नमन करते हैं, पूजा करते हैं तथा उसका सत्कार करते हैं । इसके विपरीत अन्य देवों का भाव निक्षेपा त्याज्य होने से उनके शेष तीनों निक्षेपा भी सम्यग् दृष्टि आत्मानों के लिए त्याज्य बन जाते हैं और इसी कारण आनन्द आदि दस श्रावकों ने वीतराग को छोड़कर अन्य देवों को वंदन नमस्कार नहीं करने की प्रतिज्ञा ली थी । उस समय वीतराग के सिवाय अन्य देव भावनिक्षेपा से विद्यमान नहीं थे पर केवल उनकी मूर्तियाँ थीं । अतः आनन्दादिक श्रावकों की नमन नहीं करने की प्रतिज्ञा उनकी मूर्तियों को लक्ष्य करके ही थी, यह अपने आप सिद्ध हो जाता है । इसी प्रकार वीतराग के सिवाय अन्य देवों की मूर्तियों को नमन करने का निषेध जिन मूर्ति को नमस्कार करने के विधान को अपने श्राप ही सिद्ध कर देता है । यदि कोई रात्रि भोजन के त्याग के नियम को अंगीकार करता है, तो दिन में भोजन करने की उसकी बात स्वत: ही सिद्ध हो जाती है । इस प्रकार चारों निक्षेपा के परस्पर सम्बन्ध को समझ लेने का है । उसमें विशेष बात यही है कि जिसके भाव निक्षेपों शुद्ध और वन्दनीय है उनके ही शेष निक्षेपा वन्दनीय और पूजनीय हैं, दूसरों के नहीं । इस पर से कोई ऐसा प्रश्न करे कि - 'मरे हुए बैल को देखकर किसी को प्रतिबोध हो जाय तो क्या वह पूजनीय बन जाता है ? तो इसका उत्तर स्पष्ट है । जिसका भाव निक्षेपा वंदन-पूजन योग्य है, उसी के शेष तीनों निक्षेपों की पूजा के लिए शास्त्रकार फरमाते हैं । साक्षात् बैल को किसी ने भी पूजा योग्य नहीं माना और इसीसे उसका नाम आदि भी पूजनीय नहीं होता है । राजा करकंडू आदि प्रत्येक बुद्ध महर्षि ने प्रतिवद्ध बैल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy