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द्रव्य भी निषिद्ध हो जाता है । साधु पुरुषों के लिए स्त्रियों का भाव निक्षेपा जिस प्रकार वर्जित है उसी प्रकार नाम निक्षेपा से स्त्री कथा का भी निषेध है; स्थापना निक्षेपा से स्त्री की 'चित्रित मूर्ति को देखने का भी निषेध है तथा द्रव्य निक्षेपा से स्त्री की पूर्वापर बाल्यावस्था तथा मृतावस्था आदि का स्पर्श भी निषिद्ध है। इस प्रकार हेय रूप वस्तु के चारों निक्षेपा हेय रूप बनते हैं । केवल भाव निक्षेपा को मानने वाले स्त्री के भाव निक्षेपा को छोड़कर शेष तीनों निक्षेपा का आदर कदापि नहीं कर सकते।
इस प्रकार ज्ञेय वस्तु के भाव निक्षेपा जिस प्रकार ज्ञान 'प्राप्ति में निमित्त बन सकते हैं उसी प्रकार चारों निक्षेपा ज्ञान प्राप्ति में निमित्त बन सकते हैं।
जम्बूद्वीप, भरतक्षेत्र, मेरू पर्वत, हाथी, घोड़ा आदि ज्ञेय वस्तुयें हैं । उनको जिस प्रकार साक्षात् देखने से बोध होता है उसी प्रकार उनके नाम आकार आदि देखने सुनने से भी उन वस्तुओं का बोध होता है। हेय तथा ज्ञेय की भाँति उपादेय वस्तुएं भो चारों निक्षेपों से उपादेय बनती है । श्री तीर्थंकर देव जगत् में परम उपादेय होने से उनके चारों निक्षेपा भी परम उपादेय बन जाते हैं।
समवसरण में बिराजमान साक्षात् श्री तीर्थकर देव भावनिक्षेपा से पूजनीय हैं इसलिए 'महावीर' इत्यादि उनके नाम की भी लोग पूजा करते हैं । वैराग्य मुद्रा से युक्त ध्यानारूढ़ उनकी प्रतिमा को भी लोग पूजते हैं तथा द्रव्य निक्षेपा से उनकी बाल्यावस्था को पूर्व अवस्था तथा निर्वाणदशा की
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