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श्रतीन्द्रिय होने से इन्द्रियों तथा मन के लिये प्रगोचर है । उसे इन्द्रिय तथा मानस गोचर करने के लिये उनका नाम, प्राकार तथा द्रव्य का आलंबन यही एक साधन है । नाम, आकार और द्रव्य की भक्ति को छोड़कर केवल भाव की भक्ति करना या होना, यह असंभव है ।
४ भाव निक्षेपों
जिन जिन नामवाली वस्तुओं में जो जो क्रियायें सिद्ध हैं उन उन क्रियाओं में वे वे वस्तुएं वर्तती हो तब वह भांव निक्षेपा कहलाता है - जैसे कि उपयोग सहित प्रावश्यक क्रिया में प्रवृत्त साधु, भावनिक्षेप से श्रावश्यक गिना जाता है । प्रत्येक वस्तु का स्वरूप इस प्रकार चारों निक्षेपों से जाना जा सकता है । उनमें से यदि एक भी निक्षेप मान्य हो तो वह वस्तु, वस्तु के रूप में टिकती ही नहीं ।
जिस वस्तु को जिस भाव से माना जाता है उसके चारों निक्षेपा उसी भाव को प्रकट करते हैं । शुभ भाव वाली वस्तु के चारों निक्षेपा शुभभाव को प्रकट करते हैं । मित्र भाव वाली वस्तु के चारों निक्षेपा मैत्रीभाव को उत्पन्न करते है | कल्याणकारी वस्तु के चारों निक्षेपा कल्याण भाव को पैदा करते हैं और अकल्याणकारी वस्त के चारों निक्षेपा ग्रकल्याण भाव को पैदा करते हैं ।
इस संसार में सामान्य रूप से सारी वस्तुयें हेय, ज्ञ ेय और उपादेय, इन तीनों में से किसी एक भेद की होती हैं । उदाहरण स्वरूप — स्त्री संग । साधुत्रों को स्त्रियों का साक्षात् संग निषिद्ध है । साक्षात् संग हेय है, अतः स्त्रियों का नाम, आकार एक
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