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________________ ८६ सम्यग दृष्टि देवों को श्री जिनेश्वरदेव के जन्म महोत्सव में अवश्य भाग लेना चाहिये ) इत्यादि कारणों को अपने चित्त में स्थापन कर बहुत से देवी देवता शकेन्द्र के पास आये। यदि द्रव्य निक्षेपा अपूजनीय अथवा. निरर्थक होता तो सूत्र में 'सुख के लिये तथा भक्ति के निमित्त' आदि शब्द वंदना के अधि-. कार में कदापि नहीं पाते । ऐसे ही श्री ऋषभदेव स्वामी के निर्वाण के समय भी शकेन्द्र का आसन कंपायमान होने पर अवधिज्ञान से भगवान् का निवारण समय जानकर शकेन्द्र ने भगवान् को वंदन नमस्कार किया तथा सर्व सामग्री सहित श्री अष्टापद तीर्थ पर, जहाँ भगवान् का शरीर था, आकर उदासीनतापूर्वक अश्र पूर्ण नेत्रों से श्री तीर्थकरदेव के शरीर को तीन प्रदक्षिणा दी, मृतक के योग्य सारी विधि की, इत्यादि शास्त्र प्रमाण भी द्रव्य निक्षेपा की वंदनीयता को ही सिद्ध करते हैं। __ इसके अतिरिक्त दूसरी तरह से भी द्रव्य निक्षेपा और उसकी पूजनीयता की सिद्धि होती है। श्री ऋषभदेव स्वामी के समय में तथा वर्तमान काल में आवश्यक क्रिया करते समय साधु-. श्रावक तमाम चतुर्विशति स्तव ( यानी लोगस्स सूत्र ) का पाठ बोलते हैं। __श्री ऋषभदेव स्वामी के समय में, शेष तेईस तीर्थंकरों के जीव चौरासी लाख जीवयोनि में भटकते थे इसलिये उनको उस समय किया हुआ नमस्कार भाव निक्षेपा से किया हुआ नहीं गिना जा सकता किन्तु द्रव्य निक्षेपा से ही किया हुआ गिना जाता है । वर्तमान काल में तो इनमें से एक भी भाव निक्षेपा में नहीं हैं क्योंकि सभी सिद्धगति में गये होने से भाव निक्षेपा में अरिहंत रूप में नहीं परन्तु सिद्ध रुप में ही बिराजमान हैं । जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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