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________________ साधु में तथा किसी साधु होने वाले गृहस्थ में, वर्तमान में, साधुपन न होते हुए भी साधुपन का आरोप कर उसको साधुत् कहा जाता है, यह द्रव्य निक्षेपा के आश्रय से साधुपन समझने का है। और इसी कारण साधु होने से पूर्व साधु होने वाले को द्रव्य साधु मानकर उसकी दीक्षा का महोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है तथा साधु के मृत शरीर की दाह-क्रिया के समय पालकी में बिठाकर, पैसे उछालते हुए बड़े ठाट बाट से ले जाया जाता है और लोग भी इनके दर्शन के लिये दौड़ २ कर आते हैं। श्री तीर्थंकर देवों को जन्म तथा निर्वाण के समय वंदन, नमस्कार करने का पाठ जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति आदि शास्त्रों में है तो वह नमस्कार श्री तीर्थंकर देव के द्रव्य निक्षेपा को हुआ गिना जाता है न कि भाव निक्षेपा को, क्योंकि जब तक केवलज्ञान नहीं हो तब तक भाव निक्षेपा नहीं कहलाता । भगवान् श्री ऋषभदेव स्वामी के जन्म समय शकेन्द्र के नमस्कार करने का उल्लेख श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति में बताया हुआ है तथा उसी सूत्र में कहा है कि शकेन्द्र ने श्री हरीणगमेषी देव के द्वारा अपने हित एवं सुख के लिये श्री तीर्थंकर देव का जन्म महोत्सव करने के लिये वहाँ जाने का अपना अभिप्राय देवताओं को बताया था । यह सुनकर मन में प्रसन्न होकर कई देवता वंदन करने, कई पूजा करने, कई सत्कार करने, कई सम्मान करने. कई कौतुक देखने, कई जिनेश्वरदेव के प्रति भक्ति राग निमित्त, कई शकेन्द्र के वचन पालन के लिए कई मित्रों की प्रेरणा से, कई देवियों के कहने से, कई अपना प्राचार समझकर ( जैसे कि Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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